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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२५६

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अयोध्या का इतिहास

रसातल में जाकर महाशनि को मारा। यह इन्द्र का प्यारा मित्र अजक वृषाकपि कहलाया।

वृषाकपि अरिन्दम का नाम अध्याय ७० में उन लोगों के साथ भी आया है जिन्होंने गोदावरीतट पर तीर्थ स्थापन किये थे।

विचारने से यह ध्वनित होता है कि वृषाकपि और हनुमन्त एक ही थे।[] वृषाकपि का अर्थ है पुलिंग बन्दर। तो क्या हनूमान जी ऐसे ही बन्दर थे जैसे आजकल अयोध्या आदि नगरों में उपद्रव करते हैं। जो ऐसे ही थे तो क्या कारण है जो आजकल कोई बन्दर ज्ञानी नहीं निकलता?

हम तो यह समझते हैं कि हनूमान जी और उनके सैनिक दक्षिण देश के निवासी थे। आजकल के विज्ञान से यह सिद्ध होता है कि हजारों बरस पहिले दक्षिण भारत का प्रान्त अफ़्रीका से मिला हुआ था। पीछे धरती बैठ जाने से अरब सागर बन गया, अफ्रीका के हबशियों का मुंह बन्दरों से बहुत मिलता जुलता है। दोनों की चिपटी नाक, दबै मत्थे और थूथन की भांति आगे निकले हुये मुंह अब भी देखे जाते हैं। क्या इस बात के मानने में कोई आपत्ति हो सकती है कि ये वानर उन्हीं हबशियों के भाई हों जो अफ़्रीका में अब तक बसे हैं और भारत में नष्ट हो गये या वर्णसंकर होकर यहां के निवासियों में मिल गये। इसमें एक शंका हो सकती है कि रामायण के बन्दर पिंगल वर्ण थे और अफ्रीका के हबशी काले होते हैं परन्तु यह आबहवा का प्रभाव है।

अब रहा नाम हनूमन्त । जो हम यह मान लें कि हनूमान और उनके सैनिक प्राचीन द्रविड़ थे तो संभव है कि रावण की भांति हनूमान भी किसी टामिल शब्द का संस्कृत रूप हो और जब हनूमान शब्द बना तो उसकी उत्पत्ति दिखाने को इन्द्र के बज्र से दाढ़ी टूटने की कथा गढ़ी


  1. क्योंकि हनूमान के संसर्गसे वह वृषाकपितीर्थ कहलाया।