पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१३
हनूमान

गई। इस कथा से भी यह ध्वनित होता है कि हनूमान जी पहले ऐसे कुरूप न थे। दाढ़ टूट जाने से मुँह बन्दर का सा हो गया। ऐसी ही वृषाकपि भी किसी द्रविड़ शब्द का संस्कृत अनुवाद हो सकता है क्योंकि यह तो सिद्ध ही है कि बानर गोदावरी के दक्षिण के रहनेवाले थे जहां कनाड़ी या टामील भाषा बोली जाती है। हम इस विषय में १९१३ के जर्नल रायल एशियाटिक सोसाइटी से प्रसिद्ध विद्वान मिस्टर पार्जिटर का मत उद्धृत करते हैं।

वृषा पुलिंग के लिये द्रविड़ शब्द 'आण' है और यह शब्द कन्नाड़ी और टामील और मड्यालम् तीनों भाषाओं में बोला जाता है। तिलगू में इसके बदले मग और पोटु बोलते हैं। कपि बन्दर के लिये इन चारों भाषाओं में दो शब्द हैं, १ कुरंगु, २ मंडी। बन्दरवाची शब्द कुरंगु टामील भाषा का है, शेष तीनों में कुरंग हिरन को कहते हैं। मड़यालम इस शब्द के दो रूप हैं कुरंग=हिरन, और कुरन्नु=बन्दर[१]। टामील भाषा में मंडी विशेष कर बंदरिया को कहते हैं।मड़याडम में मंडी काले मुँह के बन्दरों के अर्थ में बोला जाता है। कनाड़ी और तिलगू में मंडी संयुक्त शब्दों में हिन्दी "लोग " के अर्थ में आता है। यह अर्थ विचारने के योग्य है। कन्नाड़ी में बन्दर के लिये दो शब्द हैं, कांटि और तिम्मा और दोनों नये हैं। यह बात सर्वसम्मत है कि टामील में प्राचीन शब्द बहुत हैं।

अब आण और मंडी को मिलाने से वृषाकपि के अर्थ का द्राविड़ शब्द बन जाता है और वृषाकपि उसका संस्कृतानुवाद होता है।

आणमंडि का संस्कृत रूप हुआ हनुमंत। द्रविड़ शब्दों के संस्कृत रूप बनाने में बहुधा एक "ह" पहले जोड़ दिया जाता है। इसके कई


  1. बन्दर के लिये संस्कृत में शाखामृग शब्द का प्रयोग इसका उदाहरण है।