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चन्द्र वंश


१२—राजा कुश बड़े धर्मज्ञ और तपस्वी थे। उनका विवाह विदर्भ कुल की एक राजकुमारी के साथ हुआ था जिससे चार बेटे हुये, कुशाम्ब, कुशनाभ, अमूर्तरजस और वसु। कुश ने अपने बेटों से कहा कि जाओ धर्म से प्रजापालन करो। इस पर कुशाम्ब ने कौशा म्बी[१] नगरी ब साई। कुशनाभ महोदययूर[२] में जाकर रहे श्रमूर्तरजस धर्मारण्य[३] में जा कर बसे और वसु गिरिब्रज[४] का राजा हुआ। यह गिरिब्रज मागधी नदी के तट पर था और इसके चारों ओर पाँच पहाड़ियाँ थीं। कुशनाम के धृताची अप्सरा से सौ बेटियाँ हुई। जब लड़कियाँ सयानी हुई तो गहने कपड़े पहने बारा में नाचती गाती फिरती थीं। उनका विवाह कुशनाभ ने चूली मुनि के पुत्र ब्रह्मदत्त के साथ कर दिया। ब्रह्मदत्त कंपिलापुरी[५] का राजा था।

१६—विश्वामित्र-इनका चरित्र अपूर्व है। वाल्मीकीय रामायण में इनके विषय में जो कुछ लिखा है वह संक्षेप से यों है।

विश्वामित्र ने बहुत दिनों तक राज किया। एक बार बड़ी सेना लेकर यात्रा करते हुये वसिष्ठ के आश्रम को गये। वसिष्ठ ने उनका स्वागत किया और कुशल क्षेम पूछा। विश्वामित्र ने कहा सब कुशल


  1. कौशाम्बी यमुना के उत्तर तट पर चन्द्रवंशी राजाओं की प्रसिद्ध राजधानी थी। जब हस्तिनापूर गङ्गा की बाढ़ से कट गया तो राजा निचतु राजधानी कौशाम्बी उठा लाया।
  2. महोदयपुर कान्यकुब्ज का पुराना नाम है।
  3. कुछ लोग अनुमान करते हैं कि बलिया और गाजीपूर का कुछ अंश धर्मारण्य कहलाता था।
  4. गिरिबज-राजगृह का पुराना नाम है। यह नगर पाँच पहाड़ियों के बीच में बसा था, जिनके नाम समय समय पर बदला किये हैं। यह नगर फल्गु के तट पर बसा हुमा था।
  5. कंपिला-आज-कल का कंपिल नाम नगर एटा जिले में है।