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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/३०

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उत्तरकोशल और अयोध्या की स्थिति


या सकवनसन्ध में सागोन के जगंल में एक पर्णकुटी में दिखाई दिये थे। नगरी बसाकर उन्होंने कपिल की पर्णकुटी के स्थान पर एक महल भी बनाया और कपिल ऋषि के लिये उसी के पास एक दूसरे स्थान पर कुटी बना दी”।

ये इक्ष्वाकुओं के तीसरे राजा विकुक्षि हो सकते हैं। इससे प्रकट है कि सारे उत्तरीय भारतवर्ष में इक्ष्वाकु के वंशज ही जहाँ-तहाँ राजा थे, एक कोशल में, दूसरे कपिलवस्तु में, तीसरे विशाला में और चौथे मिथिला में। कपिलवस्तु का वर्णन रामायण में नहीं है। संभव है कि वह उस समय रहा ही न हो; यदि रहा भी हो तो कहीं हिमालय के कोने में। यदि वह और कहीं इधर उधर रहा होता तो वाल्मीकि उसका वर्णन अवश्य करते। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कोशल देश की पूर्वीय सीमा गण्डक नदी थी और देश का पूर्वीय भाग सरयू के किनारे-किनारे सरयू और गङ्गा के संगम तक विस्तृत था। यहाँ पर यह कह देना उचित जान पड़ता है कि विश्वामित्र को बक्सर में सिद्धाश्रम को जाते समय रास्ते में कोई और राज्य नहीं मिला था। बृहत्संहिता में मध्यप्रदेश के राज्यों में केवल पांचाल, कोशल, विदेह और मगध ही का उल्लेख है। विशाला मिथिला के दक्षिण-पश्चिम कोने में थी। इस से हम कह सकते हैं कि उत्तर कोशल देश की सीमा सई के किनारे-किनारे गोमती के संगम तक थी। बीच में राजा गाधि का राज्य था। यह राज्य यद्यपि कन्नौज का राज्य कहलाता था, तथापि इसके आधीन गाजीपुर और बक्सर नगरों के आस-पास का देश भी था। इस सीमा की रेखा फिर एक विशाल वन में से होती हुई बलिया के समीप सरयू और गङ्गा के संगम तक जाती है और फिर वहाँ से मुड़ कर उत्तर की ओर गण्डक से मिलती है।

कोशल देश की पश्चिमी सीमा पांचाल देश से मिली हुई थी जो बाद में दो भागों में विभक्त हो गया; उत्तरीय प्रान्त की राजधानी