पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२
अयोध्या का इतिहास


बहराइच––यह पहिले गन्धर्ववन का भाग था और कुछ लोगों का विश्वास है कि बहराइच ब्रह्मयज्ञ का अपभ्रंश है। किसी किसी का यह भी कथन है कि यहाँ पहिले "भर" बसते थे। यह भी सुना गया है कि बहराइच "बहरे आसाइश"[१] का बिगड़ा रूप है। यह पहिले सूर्य-पूजन का केन्द्र था और यहीं बालार्क का मन्दिर और कुण्ड था और इसी जगह पर सैयद सालार ग़ाजी मसऊद (बाले मियाँ) पीछे से गाड़े गये थे।

कहते हैं कि बाले मियाँ की कन के नीचे अब भी बालार्क कुण्ड है जिसका जल मोरियों द्वारा निकलता है और उससे कोढ़ी और अन्धे अच्छे हो जाते हैं।

इस जिले में एक और पवित्र स्थान है जिसको सीताजोहार कहते हैं।

गोंडा'––सम्भव है कि यह गौड़ ब्राह्मणों का आदि स्थान रहा हो। ब्राह्मणों को दो श्रेणियां हैं, (१) पञ्च गौड़ (२) पञ्च द्राविड़।

पञ्चगौड़ में कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल, उत्कल और सारस्वत ब्राह्मण हैं।

सारस्वताः कान्यकुब्जाः गौड़मैथिलिकोत्वलाः।
पञ्च गौड़ा इति ख्याताः विन्यस्योत्तरवासिनः॥

यह ध्यान में रखने की बात है कि केवल एक ही श्रेणी के ब्राह्मण इस जिले में अथवा परगना रामगढ़ गौड़ा में पाये जाते हैं। इन्हें सरयूपारीण कहते हैं जो कान्यकुब्जों की एक स्वतंत्र शाखा है और कहा जाता है कि इन्हें भगवान रामचन्द्र जी इस देश में लाये थे। गौड़ ब्राह्मणों, गौड़ राजपूतों एवं गौड़ कायस्थों को संख्या बहुत कम है और कम से कम गौड़ ब्राह्मण तो अपने को पश्चिम भारत के ही अधिवासी मानते हैं।


  1. Ocean of comfort.