यह भी कथा प्रसिद्ध है कि जब राजा मानसिंह बिसेन ने गोंडे को अपनी राजधानी बनाया तो सिवाय गोंडों के वहाँ उस जङ्गल में और कोई न था। यह भी कहा जाता है कि किसी समय उत्तर भारत का अधिकांश भाग गोंड जाति के लोगों से बसा हुआ था। यह भी संभव है कि अन्य लोगों ने जो वहाँ आकर बाद में बसे हों उन्हीं का नाम धारण कर लिया हो। महाभारत के समय यहाँ टाँगों नाम की एक जाति असती थी जो यहाँ से घोड़े ले जाकर अन्य प्रान्तों के श्रीमान पुरुषों को भेंट किया करती थी। अब उस जातिविशेष का लोप हो गया है परन्तु पहाड़ी छोटे टट्टू अब भी टाँगन कहलाते हैं।
एक बात और भी ध्यान देने योग्य है कि बङ्गाल का भी एक नाम गौड़ है और राजा आदि-मुर को जो उत्तर भारत से ब्राह्मणों और कायस्थों को ले गये थे, पश्चगौड़ेश्वर कहते थे। परन्तु यह नाम बङ्गाल सूबे को नवीं शताब्दी तक नहीं दिया गया था। पञ्चगौड़ से तात्पर्य उन भागों से था जिनमें उस समय का बङ्गाल विभक्त था अर्थात्उ त्तरराढ़, दक्षिणराढ़ इत्यादि।
"सहेट महेट" भी गोंडा जिले के अन्तर्गत है। यह प्राचीन श्रावस्ती नगर का भग्नावशेष है जिसको भगवान रामचन्द्र जी के पुत्र लवजी ने अपनी राजधानी बनाया था। इस नगर ने बौद्धधर्म का एक केन्द्र बन-कर पीछे बड़ा महत्व प्राप्त किया था। कुछ काल पीछे श्रावस्ती नगर उजड़ गया। अब इसके खंडहर बलरामपुर से पश्चिम छः कोस पर सहेट-महेट के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह नगर राप्ती और सीरगी नदी के बीच सात मील तक उजड़ा पड़ा हुआ है। किले की जगह पर एक ऊँचा टीला उसके पास मौजूद है जिसकी चोटी पर जैनियों का एक मन्दिर बना है और उसको 'प्रोडामार' कहते है। जनश्रुति है, सूर्यवंशी शाक्यकुल के राजा यहाँ राज्य करते थे। वे दो भाई थे। बड़े भाई का नाम सहेट और छोटे का नाम महेट था। उनकी जाति सरावगी