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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/३६

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उत्तरकोशल और अयोध्या की स्थिति

यहाँ यमद्वितीया को भी स्नान होता है। इस जगह फलाहारी बाबा ने एक मन्दिर बनवाया है। उनका कथन है कि श्रीहनुमान जी का जन्मस्थल यही है।

गोंडा जिले में एक और छोटा तीर्थ है जिसे मनोरामा कहते हैं। यहाँ महाराज दशरथ ने अश्वमेध यज्ञ किया था। महाभारत के शल्यपर्व में लिखा है कि यहाँ उद्दालक मुनि के पुत्र ने जब वे अयोध्या में यज्ञ करते थे, मनोरामा के नाम से देवी सरस्वती का आह्वान किया था। इससे स्पष्ट है कि यह मनोरामा एक नदी का नाम है और उन ऋषियों का दिया हुआ है जो पश्चिम से महाराज दशरथ को यज्ञ कराने आये थे।

गोंडे के उत्तर-पश्चिम ७ कोस पर मनोरामा ताल है जहाँ उद्दालक मुनि की मूर्ति विद्यमान है। इस तीर्थ में कार्तिकी पूर्णिमा को गोंडा जिले का बड़ा मेला होता है। जो लोग अयोध्या जी नहीं जा सकते वे यहीं आते हैं। इसी स्थान पर उद्दालक मुनि के पुत्र नचिकेता ने समागत मुनियों और ऋषियों को नासिकेत पुराग सुनाया था। इसी ताल से मनोरामा नदी निकली हुई है जो गर्मियों में सूख जाती, बरसात में खूब बढ़ती और सरयू में गिरती है। इसी नदी पर दूसरा मेला होता है और यह तीर्थ मनवर मखोड़ा के नाम से प्रसिद्ध है। यह अयोध्या जी से सरयू पार करके ४ कोस पर सिकंदरपुर के पास है। यहाँ चैत्र की पूर्णिमा को नहान लगता है और अयोध्या-वासी संत महन्त पधारते हैं।

गोंडा ज़िले में अत्यन्त प्रसिद्ध स्थान देवीपाटन का मन्दिर है। यद्यपि रामायण में इसकी चर्चा नहीं हैं तथापि इसके विषय में कुछ लिखना आवश्यक है। कहते हैं कि राजा कर्ण ने इसे बनवाया था। कर्ण को एक राजा ने यहाँ पड़ा हुआ पाया था। और पुत्रहीन होने के कारण उसने उसे पुत्र के समान पाला था। राजा विक्रमादित्य ने