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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/३८

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उत्तरकोशल और अयोध्या की स्थिति

 

बसती—इस ज़िले में प्रचीन राज्य कपिलवस्तु का एक अंश शामिल है। इस समय "पिपरहवा" कपिलवस्तु का भग्नावशेष बताया जाता है। परन्तु कुछ विद्वानों के मत से नैपाल की तराई में स्थित तिलौरा कोट ही प्राचीन कपिलवस्तु है। इसमें सन्देह नहीं कि लुम्बिनीबारा जहाँ भगवान बुद्ध पैदा हुये थे और जिसका वर्णन ह्वान्‌च्वांग ने किया है, नेपाल को तराई में है। अब इसको "रुमिनेदई" कहते हैं और यह अंगरेज़ी सरहद से चार मील उत्तर है।

जमथा—परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि की तपस्थली है।

सिंगिरिया—यह परसपुर के निकट है। पुत्रेष्टि यज्ञ के समय ऋष्यशृंग यहीं टिके थे।

गोरखपुर—इसी ज़िले में कुशीनगर (कसिया) है जहाँ बुद्ध जी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। चार वर्ष हुये यहाँ की भूमि खोदी गयी थी और जो कुछ प्राप्त हुआ था लखनऊ के अजायब घर में रक्खा है।

सीतापुर—इसी ज़िले में नैमिषारण्य तीर्थ है जहाँ अट्ठासी हज़ार ऋषि रहते थे और सूत जी पुराण सुनाते थे। यहीं भगवान् रामचन्द्र जी ने अश्वमेध यज्ञ किया था और उनके पुत्र कुश और लव जी ने महर्षि वाल्मीकि-रचित रामायण की कथा सुनाई थी। यहाँ से कुछ दूर पर वह स्थान बताया जाता है जहाँ महारानी सीता जी पृथ्वी में प्रवेश कर गई थीं। महाभारत के शल्य-पर्व में लिखा है कि यहीं ऋषियों ने सरस्वती का कञ्चनाक्षी नाम से आह्वान किया था। अब इस स्थान पर बहुत से ताल हैं जिनमें सब से प्रसिद्ध चक्रतीर्थ है। यहाँ ललिता देवी का मन्दिर है।

नैमिष से मिसरिख छः मील है। यहाँ सरकारी तहसील है और राजा दधीच का मन्दिर है। किसी समय राजा यहाँ तप करते थे और देवलोक में देवासुर संग्राम हो रहा था। असुरों ने देवताओं को हरा दिया था। ब्रह्मा ने देवताओं से कहा कि जब तक दधीच की हड्डियों का