पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

 

तीसरा अध्याय।

प्राचीन अयोध्या।

(क) वाल्मीकि रामायण में अयोध्या का वर्णन।

महर्षि वाल्मीकि जी की रामायण को देखने से यही सिद्ध होता है कि अयोध्या उस समय में मर्त्यलोक की अमरावती थी, अमरावती क्या—यदि अमरावती से बढ़कर कोई पुरी भूमण्डल पर थी तो अयोध्या थी। जो कुछ यहाँ विभूति या सुखसामग्री थी, उसका अत्यन्त प्रभाव था। जिस दैवी सम्पत्ति के कारण अयोध्या की शास्त्रों में भूयसी प्रशंसा की गई है उसका वर्णन करना हमारे आज के लेख का उद्देश्य नहीं है, केवल अयोध्या की उस मानुषी सम्पत्ति को दिखाना चाहते हैं जिसे लिखे पढ़े लोग नवीन समझे हुये हैं।

यह भूमण्डल की सबसे पहली लोकप्रसिद्ध राजधानी स्वयं आदिराज महाराज मनु जी ने बसाई थी। यह दैर्घ्य (लम्बाई) में बारह योजन और विस्तार (चौड़ाई) में तीन योजन थी। सुतरां, अयोध्या अड़तालीस कोस लम्बी और बारह कोस विस्तृत (चौड़ी) थी। जैसा कि महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण के बालकाण्ड में वर्णन किया है।

"अयोध्या नाम तत्रास्ति नगरी लोकविश्रुता।
मनुना मानवेन्द्रेण पुरैव निर्मिता स्वयम्॥
आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी।
श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा नानासंस्थानशोभिता॥"

ऊपर जो अयोध्या की लम्बाई चौड़ाई का वर्णन है उस में नगरमात्र का समझना चाहिये। 'राजमहल' वा 'राजदुर्ग' इस से भिन्न था। महर्षि ने दूसरी जगह लिखा है :—