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और प्राचीन ग्रन्थों में

आस्फालितं यत्प्रमदाकराग्रेः[१]
मृदंगधीरध्वनिमन्वगच्छत्।
तदम्भः. . . .
सोपानमार्गेषु च येष रामाः[२]
निक्षिप्तवत्यश्चरणान् सरागान्।
चित्रद्विपाः पद्मवनावतीर्णाः[३]
करेणुभिर्दत्तमृणालभंगाः।
स्तम्भेषु योषित् प्रतियातनानाम्॥[४]
उत्क्रान्तवर्णाक्रमधूसराणाम्।
आवर्ज्य शाखाः सदयं च यासाम्।[५]


  1. लागत तरुनिहाथ जहँ नीरा।
    बज्यो मृदङ्ग समान गंभीरा॥

  2. जिन सीढ़िन पर सिन्धुर गामिनि।
    डारत रंगि चरन वरभामिनि॥

  3. बने चित्र महँ नाग विशाला।
    लहत प्रिया सन मृदुल मृनाला॥

  4. खंभन मांहि चित्र तरुनिन के।
    धूमिल भये रँग अब तिनके॥

  5. जाकी डार झुकाय संभारी।
    तोरत फूल रहीं सुकुमारी॥