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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/५३

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अयोध्या का इतिहास

पुष्पाण्युपात्तानि विलासिनीभिः॥
(ता) उद्यान लताः॥
वलिक्रियावर्जितसैकतानि।[]
...सरयूजलानि॥

परन्तु उसी समय का बना हुआ एक महाकाव्य और है जिसके आदि ही में अयोध्या का वर्णन है। इस ग्रन्थ का नाम जानकीहरण है और इसका निर्माता कवि कुमारदास है। यह ग्रन्थ सिंहल देश में मिला और स्वर्गीय धर्मागमनाथ स्थविरपाद ने उसे तीस वर्ष हुये सिंहली अक्षरों में छपवाया था।

"सिंहल में कुमारदास के लिये एक गलत धारणा है। यहाँ कहते हैं कि कालिदास के नए मित्र कुमारदास सिंहल के राजा थे। लेकिन महावंश में किसी सिंहल-राज का नाम कुमारदास नहीं पाया जाता। न यहाँ के पुराने इतिहास-ग्रन्थों में जानकीहरण ऐसे प्रौढ़ ग्रन्थ के रचयिता किसी महाकवि राजा का नाम आता है। सिंहल के राजा सभी बौद्ध थे। इसलिये भी जानकीहरण पर काव्य लिखना संदिग्ध समझा जाता है। यहाँ यह भी कहा जाता है कि कालिदास ने स्वयं इस काव्य को लिखकर कुमारदास के नाम से प्रसिद्ध कराया। वास्तविक बात यह जान पड़ती है—कालिदास और राजा कुमारदास दोनों घनिष्ट मित्र थे। यह राजा कविता-प्रेमी भी था। किन्तु राजा के नाम में अनुप्रास के ही लिये 'दास' जोड़ा गया है। वस्तुतः यह कुमार सिंहल का राजा कुमार धातुसेन (५१५—२४ ई॰) न हो कर 'गुप्त-साम्राट्' कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य


  1. वेदि विहीन होइ सरितीरा।
    बिन सुगन्ध चूरन सुचि नीरा॥

    (रघुवंश भाषा, सर्ग १६)