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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/६०

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सूर्यवंश अस्त होने के पीछे की अयोध्या


महाभारत के महासमर तक[] अयोध्या बराबर सूर्य्यवंशियों की राजधानी रही। उस युद्ध में कुमार अभिमन्यु के हाथ से अयोध्या का सूर्य्यवंशी महाराज 'बृहद्दल' मारा गया। इसके बाद इस राज्य पर ऐसी तबाही आई कि अयोध्या बिल्कुल उजड़ गई। सूर्य्यवंश अन्धकार में लीन हो गया। इस वंश के लोग दूसरे के अधीन हुए। प्राणों का मोह बढ़ा और स्वाधीनता नष्ट हुई। उदयपुर के धर्मात्मा राणा, जोधपुर के रणबंके राठोड़ और जयपुर के प्रतापी कछवाह इसी सूर्य्यवंश महावृक्ष की बची बचाई शाखा के अवशिष्ट हैं।

महाभारत तक का वृत्तान्त पुराणों में मिलता है और पीछे का कुछ वृत्तान्त जाना नहीं जाता कि अयोध्या में कब क्या हुआ और किसने क्या किया। परन्तु शाक्यसिंह बुद्धदेव के जन्म से फिर अयोध्या का पता चलता है और कुछ कुछ वृत्तान्त भी मिलता है। कारण बुद्धदेव कपिलवस्तु में उत्पन्न हुये, श्रावस्ती में रहे और कुशीनगर वा कुशीनर में निर्वाण को प्राप्त हुए। यह सब स्थान कोशल देश में विद्यमान थे। बुद्धमत के ग्रन्थों से जाना जाता है कि उन दिनों कोशल वा अवध की राजधानी का राज सिंहासन 'श्रावस्ती' में था जिसको श्रीरामचन्द्रदेव के कनिष्ठ पुत्र लव ने 'शरावती' के नाम से बसाकर अपनी राजधानी बनाया था।[] इसीका नाम जैनों के प्राकृत-ग्रन्थों में 'सावत्थी' है। अब यह अयोध्या के पास उत्तर दिशा में महाराज बलरामपुर के इलाके, गोंडा के ज़िले में उजड़ी हुई पड़ी है। वहाँवाले इसे "सहेट-महेट" कहते हैं। ईसा की सप्तम शताब्दी में 'ह्वान्‌च्वांग' नामक प्रसिद्ध बौद्ध यात्री भारतवर्ष में आया था। उसने अयोध्या के साथ श्रावस्ती और कपिलवस्तु आदि की भी यात्रा पुस्तक में वर्णन की है। उसीके अनुसार अलेकज़ण्डर कनिंघाम साहेब ने "सहेट-महेट" के खंडहर खुदाकर अनेक ऐतिहा-


  1. और उसके कई पीढ़ी पीछे तक।—लेखक
  2. यह भी ठीक नहीं। श्रावस्ती राजा श्रावस्त की बसाई थी।