सिक बातों का पता लगाया जिनका वर्णन हम किसी दूसरे लेख में करेंगे।
बौद्धों के समय यद्यपि अयोध्या अवध की राजधानी थी, तथापि उसकी दशा ऐसी खराब न थी जैसी पीछे मुसल्मानों के समय हुई। तब तक पुराने राजमन्दिर और सुन्दर देवस्थान तोड़े नहीं गये थे और न अयोध्यावासी ब्राह्मणों का रक्त बहाया गया था। चीनयात्री के लेख से भी अयोध्या की पिछली दशा सुन्दर ही प्रतीत होती है। ईस्वी सन् से ५७ वर्ष पहिले श्रावस्ती के बौद्ध राजा को जीत कर उज्जैन के प्रसिद्ध महाराज विक्रमादित्य ने आर्य्य-राजधानी अयोध्या का जीर्णोद्धार किया।[१] पुराने मन्दिर देवालय और स्थान सब परिष्कृत किये गये और अनेक नवीन मन्दिर भी बनावाये गये। वह प्रसिद्ध मन्दिर जिसको बादशाह बाबर ने सन् १५२६ ई॰ में तोड़कर भगवान् रामचन्द्रदेव की जन्मभूमि पर मसजिद खड़ी की, इन्हीं महाराज विक्रम ने बनवाया था। यदि अब तक वह मन्दिर विद्यमान रहता तो न जाने उससे कैसी कैसी ऐतिहासिक वृत्तान्तों का पता लगता।
श्रावस्ती ने आठ सौ वर्ष तक स्वतन्त्रता का सुख भोगा। अन्त को वह भी जननी अयोध्या के समान पराधीन हो दूसरों का मुँह देखने लगी। कभी पटने के प्रतापशाली राजाओं ने इसे अपनाया और कभी कन्नौजवालों ने निज राजधानी की सेवा में इसे नियुक्त किया। अपने लोग चाहे कितने ही बुरे क्यों न हों अन्त को अपने अपने ही हैं। अपना यदि मारे भी तो भी छाया में रखता है। बौद्धों और जैनों के समय पहिले की सी बात न थी तो भी अयोध्या की इस समय दशा मुसल्मानों के राज्य से लाख गुनी अच्छी थी। क्योंकि दूसरों की राजधानी होने की अपेक्षा अपनों की दासी होना भी भला था, परन्तु विधाता को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ इसके लिये और भी भयङ्कर समय उपस्थित
- ↑ हमारी जान में यह भी ठीक नहीं है।