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सूर्यवंश के अस्त होने के पीछे की अयोध्या

कर दिया। प्रथम तो रघुवंशियों के विरह से यह आप ही मर रही थी दूसरे परस्पर की फूट ने इसे और भी हताश कर दिया था। वह घाव अभी तक सूखने भी न पाये थे जो राम-वियोग से इसके अर्चनीय और वन्दनीय शरीर में होने लगे थे, अकस्मात् महमूद गज़नवी के भाञ्जे सैयद़ सालार ने इस पर चढ़ाई कर 'जले पर नून' का सा असर किया। इसी सालार ने काशी के वृद्ध महाराज 'बनार' को धोखे से नष्ट कर काशी का स्वाधीन सुख अपहरण किया और इसीने अयोध्या को चौपट किया। कई लड़ाइयों बाद सन् १०३३ में यह सालार हिन्दुओं के हाथ से बहराइच में मारा गया। 'गाज़ी मियाँ' के नाम से आजकल यही 'सालार' मूर्ख और पशुप्राय जीवित हिन्दुओं से पूजा करवा रहा है।

"किमाश्चर्य्यमतःपरम्।"

सन् १५२६ ई॰ में बाबर ने हिन्दुस्तान पर चढ़ाई की और दो वर्ष पीछे अर्थात् सन् १५२८ में अयोध्या के एक मात्र अवशिष्ट 'रामकोट' मन्दिर को विध्वंस कर रघुवंशियों की जन्म-भूमि पर अपने नाम से मसजिद बनवाई जो सही सलामत आजतक उसी तरह साभिमान खड़ी हुई है। मुसल्मान इतिहास-लेखकों ने बाबर को शान्त और दयालु बादशाह लिखा है; किन्तु बाबर की बर्बरता और अन्याय के हमारे पास अनेक प्रमाण हैं जिनको हम मर कर भी नहीं भूल सकते! अकबर के समय में धर्मप्रिय हिन्दुओं ने 'नागेश्वरनाथ' और चन्द्रहरि आदि देवों के दस पाँच मन्दिर ज्यों त्यों कर फिर बनवा लिये थे जिनको औरङ्गजेब ने तोड़ उनकी जगह मसजिद खड़ी की। सन् १७३१ ई॰ में दिल्ली के बादशाह ने अवध के झगड़ालू क्षत्रियों से घबरा कर अवध का 'सूबा' सआदत खाँ को दिया तब से नवाबी की जड़ जमी।

अवध की नवाबी का बीज सआदत खाँ ने बोया था। मनसूर अली खाँ उपनाम सफदरजंग के समय वह अङ्कुरित और पल्लवित हुआ। नव्वाब