इसे जनौरा (जनकौरा का अपभ्रंश) इस लिये कहते हैं कि जब महाराज जनक अयोध्या आते थे तो यहीं ठहरते थे। क्योंकि बेटी के घर हिन्दूलोग पानी तक नहीं पीते। इस गाँव में सूर्यवंशी ठाकुर रहते हैं जो अपने को रामचन्द्र जी के वंशज समझते हैं। उनके पूर्व-पुरुष कुलू पर्वत (पंजाब) से लाये गये थे। कहा जाता है कि जब राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या को फिर से निर्माण कराना आरम्भ किया तो पण्डितों ने उन्हें रामचन्द्र जी के वंशजों को यज्ञ में भाग लेने के लिये बुलाने की सलाह दी थी। अन्यथा यज्ञ हो ही नहीं सकता था।
जनौरा से यात्री खोजनपुर और सिविल-लाइन के बीच से होता हुआ घाघरा के तट पर निर्मलीकुण्ड जाता है और वहाँ से गुप्तारघाट होता हुआ परिक्रमा को वहीं समाप्त कर देता है जहाँ से उसे आरम्भ करता है। इस प्रकार अयोध्या नगर की स्थिति निश्चित हुई।
अब हम अयोध्या के कुछ ऐतिहासिक स्थानों का वर्णन करेंगे। इन में सबसे अधिक उल्लेखनीय स्थान रामकोट (रामचन्द्र जी का दुर्ग) है। दुर्ग के भीतर बहुत अधिक भूमि है और प्राचीन पुस्तकों में लिखा है कि इस दुर्ग में २० फाटक थे और प्रत्येक फाटक पर रामचन्द्र जी के मुख्य मुख्य सेनापति रक्षक थे। इन गढ़-कोटों के नाम भी वही थे और हैं जो इन के रक्षकों के थे। इस दुर्ग के भीतर ८ राजप्रासाद थे जहाँ राजा दशरथ, उनकी रानियाँ और उनके बेटे रहते थे। अयोध्या माहात्म्य में निम्नलिखित अंश रामकोट के वर्णन में लिखा है।
"राजप्रासाद के मुख्य फाटक पर हनुमान जी का वास था और उनके दक्षिण में सुग्रीव और उसीके निकट अंगद रहते थे। दुर्ग के दक्षिण द्वार पर नल नील रहते थे और उनके पास ही सुषेण। पूर्व की ओर 'नवरत्न' नामक एक मन्दिर था और उसके उत्तर में गवाक्ष रहते थे। दुर्ग के पश्चिम द्वार पर दधिवक्र थे और उनके निकट शतवलि और कुछ दूर पर गन्धमान्दन, ऋषभ, शरभ और पनस थे। दुर्ग के उत्तर द्वार पर विभीषण