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आजकल की अयोध्या


दूसरे और तीसरे कोट सुग्रीव-टीला और अङ्गद-टीला (कबीर-पर्वत) है। दोनों गढ़ी के दक्षिण में हैं। जेनरल कनिंघम का कथन है कि सुग्रीव-टीला उसी स्थान पर है जहाँ ह्वानच्वांग के अनुसार मणिपर्वत के दक्षिण पश्चिम में ५०० फ़ुट की दूरी पर एक बड़ा बौद्ध मठ था। पाँच सौ फ़ुट आगे वह स्तूप था जहाँ बुद्ध के नख और केश रक्खे गये थे। कनिंघम यह भी मानते हैं कि रामकोट और मणिपर्वत से कोई सम्बन्ध था और इन खण्डहरों का भी रामकोट से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।

इसके बाद दूसरा महत्व का स्थान जन्मस्थान है जहाँ बाबर ने १५२८ में एक मसजिद बनवाई थी जो आज तक उसके नाम से प्रसिद्ध है। जिस स्थान पर मन्दिर बना था उसे लोग यज्ञवेदी कहते हैं। कहा जाता है कि दशरथ ने यहीं पुत्रेष्ठि-यज्ञ किया था। हम अपने बाल्य-काल में यहाँ से जले चावल खोदा करते थे।

विक्रमादित्य द्वारा अयोध्या के जीर्णोद्धार की चर्चा हो चुकी है। यह बात दन्तकथाओं के भी अनुकूल है और ऐतिहासिक अन्वेषणों से भी पता चलता है कि विक्रमादित्य के पहिले अयोध्या की दशा नष्टप्राय थी। क्योंकि यह सर्वसम्मत है कि कालिदास इन्हीं विक्रमादित्य के समय में हुये थे और वे इनकी सभा के नवरत्नों में से एक रत्न थे। हम यह मानते हैं कि रघुवंश के १६वें सर्ग में जो कुश के द्वारा अयोध्या की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित करने की चर्चा है वह कदाचित् गुप्तों की राजधानी उज्जैन से (पाटलिपुत्र से नहीं) हटा कर चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा अयोध्या ले जाने की बात है[१] और यज्ञवेदी वही स्थान है, जहाँ यज्ञ हुआ था जब कि चावल और घी का आज का सा चढ़ा भाव नहीं था। यज्ञवेदी भगवान् रामचन्द्र का जन्म स्थान हो सकती है, किन्तु यह मेरा दृढ़मत है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने भी से फिर से इसे यज्ञ करा कर पवित्र किया था। रामचन्द्र जी के पुराने मन्दिर में थोड़ा ही हेर फेर हुआ है।


  1. इसका पूरा वर्णन अध्याय १० में है।