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आजकल की अयोध्या

मूर्त्ति है। किन्तु उसके हाथ में चक्र है इससे यह अनुभव हुआ कि वह लक्ष्मण जी की ही मूर्त्ति है, क्यों कि लक्ष्मण धरा के आधार शेष के अवतार हैं और शेष कृष्ण वर्ण हैं। नागपञ्चमी के अवसर पर अयोध्या के निवासी अन्य किसी नाग की पूजा न करके यहीं भगवान् शेष के अवतार लक्ष्मण जी को लावा (खील) चढ़ाते हैं।

फिर सुन्दर घाट और पत्थर की सीढ़ियों पर चलते हुये, जिन्हें राजा दर्शनसिंह ने बनाया था हम नागेश्वरनाथ जी के ऐतिहासिक मन्दिर पर पहुँचते हैं। इसी मूर्त्ति के द्वारा और सरयू के द्वारा विक्रमादित्य ने अयोध्या का पता लगाया था। यह शिवजी को बहुत पुरानी मूर्त्ति है। कहते हैं कि भगवान् रामचन्द्र के पुत्र कुश ने इसे स्थापित किया था। कुश का अंगद (बाँह का भूषण) सरयू में गिर पड़ा था और वह पाताल में चला गया जहाँ नागलोक के राजा की कन्या ने उसे उठा लिया। महाराज कुश ने नागों को नष्ट करना चाहा तब महादेवजी इन दोनों में मेल कराने आये थे। कुश ने उनसे प्रार्थना की कि आप यहीं रहें और यह नियम करा दिया कि बिना नागेश्वरनाथ की पूजा किये किसी यात्री को अयोध्या आने का फल न होगा।

नागेश्वरनाथ जी के पास ही उत्तर की ओर गली में एक ओर देखने योग्य मन्दिर है। वहाँ एक ही काले पत्थर में चारों भाइयों की मूर्त्तियाँ खुदी हैं और बीच में सीता जी की मूर्ति है। कथा प्रसिद्ध है कि बाबर ने जन्म स्थान का मन्दिर नष्ट कर दिया तो हिन्दू इसे उठा लाये थे। इसका सविस्तार वर्णन अध्याय १३ में है।

फिर बड़ी सड़क पर आ जायँ तो हमें बहुत से मन्दिर मिलेंगे। यहीं विक्टोरिया पार्क है, जिसमें राजराजेश्वरी विक्टोरिया की मूर्त्ति एक मण्डप के नीचे स्थापित है। कुछ बायें पर पुराना स्कूल है, जिसे महाराज की कचहरी कहते हैं। इसमें हमने प्रारंभिक शिक्षा पाई थी। फिर दाहिनी ओर काशी के सुप्रसिद्ध रईस राजा मोतीचन्द के पितामह