और बढ़ई का काम। इसीसे अनुमान किया जा सकता है कि नीचे के देश में भी जो लोग ऐसे उद्यम करते हैं वे भी पहिले इसी जाति के थे।"
दूसरी जाति जो अबतक प्रबल रही है भरों की है। इनमें कुछ रजभर कहलाते हैं जिनके नाम ही से प्रकट है कि इस जाति के लोग पहिले राजा थे। अवध प्रान्त में अब भी भरों के गढ़ों के भग्नावशेष पाये जाते हैं। "मलिक मुहम्मद जायसी"[१] शीर्षक अंग्रेज़ी लेख में हमने लिखा है कि गढ़ अमेठी और जायस जिसका प्राचीन नाम उदयनगर (या उद्यान नगर) था दोनों पहिले भरों के अधिकार में थे।
अवध गज़ेटियर में लिखा है कि भर जाति के लोग अवध के पूर्व ज़िलों में इलाहाबाद और मिर्ज़ापूर में पाये जाते हैं। कुछ लोग इनको क्षत्रिय समझते हैं परन्तु हमको इसमें सन्देह है। ऐसा जान पड़ता है कि अवध के पश्चिम में पासी, अवध के पूर्व और मध्य में भर और गोरखपूर और बनारस के कुछ भाग में (जो पहिले कोशल ही के अन्तर्गत थे) चीरू एक ही समय में राज करते थे। हज़ारों वर्ष पहिले आर्यों ने इनको आधीन कर लिया था। इन्हें मारकर उत्तर या दक्षिण के पहाड़ी प्रान्तों में भगा दिया था और जब सूर्यवंश की घटती के दिन आये तो ये फिर प्रबल हो गये। प्रश्न यह उठता है कि यह लोग अब चोर डाकुओं में क्यों गिने जाते हैं? उत्तर स्पष्ट है। यह लोग बड़े वीर और स्वतंत्रता देवी के भक्त पुजारी थे परन्तु आर्यों के हथियारों और उनके युद्ध कौशल से इन्हें हार जाना पड़ा। जब विजेता इनको सताते थे तो यह लोग भी उनको लूट लिया करते थे। यही करते करते अब उनकी बान सी पड़ गई है और हज़ारों वर्ष की निरन्तर घटती से अब यह लोग चोरी डकैती में पक्के हो गये और अब उनका यही धंधा रह गया। अवध गज़ेटियर में लिखा है कि मिर्ज़ापूर के पूर्व के पहाड़ी प्रान्त में अब तक भर राजा है। सर हेनरी इलियट ने लिखा है कि यहाँ यह लोग रजभर और भर-
- ↑ Allahabad University Studies, Vol. vi, Part I page 326.