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छठा अध्याय।
वेदों में अयोध्या

वेदत्रयी में स्पष्ट रूप से न कोशल का नाम आया है न उसकी राजधानी अयोध्या का।[१] अथर्ववेद के द्वितोय खण्ड में लिखा है:—

अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूः अयोध्या;
तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गा ज्योतिषावृतः।

[देवताओं की बनाई अयोध्या में आठ महल, नवद्वार और लौहमय धन-भण्डार है, यह स्वर्ग की भाँति समृद्धिसंपन्न है।]

ऋग्वेद मं॰ १०,६४, ९ में सरयू का आह्वान सरस्वती और सिन्धु के साथ किया गया है और उससे प्रार्थना की गई है कि यजमान को तेज बल दे और मधुमन् घृतवत् जल दे।

सरखतीः सरयुः सिन्धुरूमिभिः महोमही रवसायंतु वक्षणीः,
देवी रायो मातरः सूदयिल्वो घृतवतपयो मधुमन्नो अर्चत।

इससे प्रकट है कि हमारे देश के इतिहास के इतने प्राचीन काल में भी सरयू की महिमा सरस्वती से घट कर न थी। पंजाब की दो नदियों के


  1. इसका हमें कोई सन्तोषजनक कारण नहीं मिलता। प्रसिद्ध विद्वान् मिस्टर पार्जिटर का मत है कि बड़े बड़े राजाओं को अपने बाहुबल और अपनी बड़ी बड़ी सेनाओं पर भरोसा था और उन्हें उस दैवी सहायता की परवाह न थी जो ऋषि लोग उनको दिला सकते थे। पुराणों में इतना हो लिखा है कि वे राजा लोग बड़े वानी और बड़े यज्ञ करनेवाले थे परन्तु ऋषियों ने उनके नाम के कोई मंत्र नहीं छोड़े। कोशल के राजाओं के विषय में यह कोई नहीं कह सकता कि कोई ऋषि उनके दार में न था क्योंकि वसिष्ठ जिनके और जिनके शिष्यों के नाम अनेक मंत्र हैं सूर्यवंश के कुलगुरु थे।