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अयोध्या का इतिहास

साथ सरयू का नाम आने से कुछ विद्वान यह अनुमान करते हैं कि इस नाम की एक नदी पंजाब में थी परन्तु हमें यह ठीक नहीं जँचता।

शतपथ ब्राह्मण में कोशल का नाम आया है और ऋग्वेद में कोशल के सूर्यवंशी राजाओं का कहीं कहीं नाम है। ऋग्वेद मं॰ १०, ६०, ४ का ऋषि राजा असमाती और देवता इन्द्र हैं।

यस्येक्ष्वाकुरुपव्रत रेवान्मराय्येधते। दिवीव पंच कृष्टयः॥

इसमें इक्ष्वाकु या तो पहिला राजा है या उसका कोई वंशज। और वह इन्द्र की सेवा में ऐसा धनी और तेजस्वी है जैसे स्वर्ग में पाँच कृष्टियाँ (जातियाँ) हैं।

इक्ष्वाकु से उतर कर बीसवीं पीढ़ी में युवनाश्व द्वितीय का पुत्र मान्धातृ हुआ। वह दस्युवों का मारनेवाला बड़ा प्रतापी राजा था और ऋग्वेद मं॰ ८,३९, ९ में अग्नि से उसके लिये प्रार्थना की जाती है।

वह मंत्र यह है:—

'यो अग्निः सप्तमानुषः श्रितो विश्वेषु सिंधुषु।
तमागन्म त्रिपस्त्य मंधातुर्दस्युहन्तममग्निपक्षेषु
पूर्व नभंतामन्यके समे।'

ऋग्वेद मं॰ ८, ४०, १२ में मान्धातृ अंगिरस के बराबर ऋषि माना गया है।

एवेन्द्राग्निभ्यां पितृवन्नवीयो मन्धातृवदंगिर स्वादवाचि।
विधातुना शर्मणां पातमस्मान्वयं स्याम पतयो रयीणां॥

इसके आगे ऋग्वेद मं॰ १०, १३४ का ऋषि यही यौवनाश्व मान्धता है। उस सूक्त का अन्तिम मंत्र यह है:—

नकिर्देवा मनीमसि नत्किरायो पयामसि, मंत्रश्रुत्यं, चरामसि।
पक्षेभिरभिको भिरपामि संरभामहे।