पृष्ठ:अर्थशास्त्र शब्दावली.pdf/२

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सम्पादकीय वक्तव्य

हिन्दी में अर्थशास्त्र-सम्बन्धी साहित्य की कमी का एक मुख्य कारण यथेष्ट पारिभाषिक शब्दों का न होना है। आधुनिक लेखकों को पद-पद पर शब्दों की कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यही सोच कर सन् १९०६ ई० में काशी की नागरी प्रचारिणी समा ने हिन्दी- वैज्ञानिक कोष प्रकाशित किया था, जिसमें अन्य विषयों के साथ अर्थ-शास्त्र के भी पारिभाषिक शब्द दिये गये थे। सन् १९०८ ई० में अलीगढ़ के पं० बमबल्लभ जी मिश्र ने 'हिन्दी-व्यापारिक कोष' प्रकाशित किया था। तत्कालीन अवस्था में ये कोष लेखकों के बहुत सहायक हुए। परन्तु ज्यों-ज्यो रचना कार्य बढ़ता गया, ये कोष अपर्याप्त प्रतीत होने लगे।

दिसम्बर सन् १९२०ई० के प्रयाग के अधिवेशन में 'इंडयन 'इकानामिक ऐसोसियेशन' ने निश्चय किया कि हिन्दी गुजराती मराठी आदि भाषाओं में अर्थशास्त्र के अंगरेजी के पारिभाषिक शब्द तैयार करने के लिए एक उपसमिति का संगठन किया जाय । तदनुसार ऐसोसियेशन की कार्य समिति ने पांच सजनों की एक उपसमिति बनायी, जिसके मंत्री श्री॰ प्रोफेसर दयाशंकरमी दुबे नियुक्त हुए । उपसमिति ने ढाई सौ शब्दों की सूची बनाकर लगभग दो मै विद्वानों के पास