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अहङ्कार

थायस ने कुटिल हास्य करके उत्तर दिया—

मित्र, यदि वह ऐसा अद्भुत प्रेम है तो तुरन्त दिखा दो । एक क्षण भी विलम्ब न करो। लम्बी-लम्बी वक्तृताओं से मेरे सौंदर्य्य का अपमान होगा। मैं आनन्द का स्वाद उठाने के लिए रो रही हूँ। किन्तु जो मेरे दिल की बात पूछो, तो मुझे भय है, कि मुझे इस कोरी प्रशंसा के सिवा और कुछ हाथ न आयेगा। वादे करना आसान है, उन्हें पूरा करना मुश्किल है। सभी मनुष्यों में कोई-न-कोई गुण विशेष होता है। ऐसा मालूम होता है कि तुम वाणी में निपुण हो। तुम एक अज्ञात प्रेम का वचन देते हो। मुझे यह व्यापार करते इतने दिन हो गये, और उसका इतना अनुभव हो गया है कि अब उसमें किसी नवीनता की, किसी रहस्य की आशा नहीं रही। इस विषय का ज्ञान प्रेमियों को दार्शनिकों से अधिक होता है।

'थायस, दिल्लगी की बात नहीं है, मैं तुम्हारे लिए अछूता प्रेम लाया हूँ।'

'मित्र, तुम बहुत देर में आये। मैं सभी प्रकार के प्रेमों का स्वाद ले चुकी।'

'मैं जो प्रेम लाया हूँ, वह उज्ज्वल है, श्रेय है। तुम्हें जिस प्रेम का अनुभव हुआ है वह निन्द्य और त्याज्य है।'

थायस ने गर्व से गर्दन उठाकर कहा—

मित्र, तुम मुँहफट जान पडते हो। तुम्हे गृहस्वामिनी के प्रति मुख से ऐसे शब्द निकालने में जरा भी संकोच नहीं होता? मेरी ओर आँख उठाकर देखो और तब बताओ कि मेरा स्वरूप निन्दित और पतित प्राणियों ही का-सा है। नहीं, मैं अपने कृत्यों पर लज्जित नहीं हूँ। अन्य स्त्रियाँ भी जिनका जीवन मेरे ही। जैसा है, अपने को नीच और पतित नहीं समझती, यद्यपि उनके पास न इतना धन है और न इतना रूप। सुख मेरे पैरों के नीचे-