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अहङ्कार


आँखें बिछाये रहता है, इसे सारा जगत जानता है। मैं संसार के मुकुट-धारियों को पैर की धूलि समझती हूँ। उन सबों ने इन्हीं पैरों पर शीश नवाये हैं। आँखें उठाओ। मेरे पैरों की ओर देखो। लाखों प्राणी उनका चुम्बन करने के लिए अपने प्राण भेंट कर देंगे। मेरा डील-डौल बहुत बड़ा नहीं है, मेरे लिए पृथ्वी पर बहुत स्थान की जरूरत नहीं। जो लोग मुझे देव-मन्दिर के शिखर पर से देखते हैं उन्हें मैं बालू के कण के समान दीखती हूँ, पर इस कण ने मनुष्यों में जितनी ईर्षा, जितना द्वेष, जितनी निराशा, जितनी अभिलाषा और जितने पापों का संचार किया है उनके बोम से अटल पर्वत भी दव जायगा। जब मेरी कीर्ति समस्त संसार में प्रसारित हो रही है तो तुम्हारी लज्जा और निन्दा की बात करना पागलपन नहीं तो और क्या है ?

पापनाशी ने अविचलित भाव से उत्तर दिया

सुन्दरी, यह तुम्हारी भूल है। मनुष्य जिस बात की सराहना करते हैं वह ईश्वर की दृष्टि में पाप है। हमने इतने मिन्नभिन्न देशों में जन्म लिया है कि यदि हमारी भाषा और विचार अनुरूप न हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। लेकिन मैं ईश्वर को साक्षी देकर कहता हूँ कि मैं तुम्हारे पास से जाना नहीं चाहता। कौन मेरे मुख में ऐसे आग्नेय शब्दों को प्रेरित करेगा जो तुम्हें मोम की भांति पिघला दें कि मेरी उँगलियाँ तुम्हें अपनी इच्छा, के अनुसार रूप दे सकें। ओ नारिरल! वह कौन सी शक्ति ' है जो तुम्हें मेरे हाथों में सौंप देगी, कि मेरे अंत:करण में निहित सप्रेरणा तुम्हारा पुनसंस्कार करके उन्हें ऐसा नया और परिस्कृत सौन्दर्य प्रदान करे कि तुम आनन्द से विह्वल हो पुकार उठो, 'मेरा फिर से नया संस्कार हुआ है ?, कौन मेरे हृदय में उस .सधा-स्रोत को प्रवाहित करेगा कि तुम उसमें नहा कर फिर अपनी