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अहङ्कार

थायस-मुझे उसकी सत्यता पर विश्वास क्योंकर आये है।

पापनाशी-दाकद और अन्य नबी उसकी साक्षी देंगे: तु अलौकिक दृश्य दिखाई देंगे, वह इसका समर्थन करेंगे।

थायस-योगीजी, आपकी आवों से मुझे बहुत, संतोषा हो रहा है, क्योंकि वास्तव में मुझे इस संसार में सुख नहीं मिला। मैं किसी रानी से कम नहीं हूँ, किन्तु फिर भी मेरी दुराशाओं और चिन्ताओं का अन्त नहीं है। मैं जीने से उकता गई, हूँ। अन्य पिया मुझ पर ईर्षा करती हैं, पर मैं कभी-कभी उस दुःख की मारी, पोपली बुढ़िया पर ईर्षा करती हूँ जो शहर के फाटक की छाँह में बैठी बताशे बेचा करती थी। कितनी ही बार मेरे मन में आया है कि गरीब ही सुखी, सज्जन और सच्चे होते हैं, और दीन, हीन, निष्पम रहने में चित्त को बड़ी शान्ति मिलती है। आपने मेरी आत्मा में एक तूफान-सा पैदा कर दिया है और जो नीचे दबी पड़ी थी उसे ऊपर कर दिया है। हाँ ! मैं किसका विश्वास करू १ मेरे जीवन का क्या अन्च होगा-जीवन ही क्या है?

वह यह बातें कर रही थी कि पापनाशी के मुख पर तेज छा गया, सारा मुख-मंडल अनादि-ज्योति से चमक उठा, उसके मुंह से यह प्रतिभाशाली वाक्य निकाले-

कामिनी, सुन ! मैंने जब इसघर में कदम रखा तो मैं अकेला नाया। मेरे साथ कोई और भी था और वह अब भी मेरे बमला, में खड़ा है। तू अमी. उसे नहीं देख सकती क्योंकि वेरी आँखों में इतनी शक्ति नहीं है। लेकिन शीघ्र ही स्वर्गीय प्रतिमा से तू उसे। आलोकित देखेगी और सेरे मुँह से आप ही आप निकल पड़ेगायही मेरा आराध्य देव है। तूने अभी उसकी अलौकिक शशि देखी। अगर उसने मेरी आँखों के सामने अपने, दयालु हाय कर