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अहङ्कार

भोज में सम्मिलित होने से यथाशक्ति रोके। पर पुनः विचार किया तो विदित हुआ कि यह उतावली का समय नहीं है। वर्षों का जमा हुआ मनोमालिन्य एक रगड़ से नहीं दूर हो सकता। रोग का मूलनाश शनैः शनैः, क्रम-क्रम से ही होगा। इसलिए उसने धर्मोत्साह के बदले बुद्धिमत्ता से काम लेने का निश्चय किया और पूछा-वहाँ किन किन मनुष्यों से भेंट होगी।

उसने उत्तर दिया-पहले तो वयोवृद्ध कोटा से भेंट होगी जो यहाँ की जलसेना के सेनापति हैं। उसीने यह दावत दी है। निसियास और अन्य दार्शनिक भी आयेंगे जिन्हें किसी विषय की मीमांसा करने ही में सबसे अधिक आनन्द प्राप्त होता है। इनके अतिरिक्त कविसमाज-भूषण कलिकांत, और देवमन्दिर के अध्यक्ष भी आयेंगे। कई युवक होंगे जिनको घोड़े निकालने ही में परम आनन्द आता है और कई स्त्रियाँ मिलेंगी जिनके विषय में इसके सिवाय और कुछ नहीं कहा जा सकता कि वे युवतियाँ हैं।

पापनाशी ने ऐसी उत्सुकता से जाने की सम्मति दी मानों उसे आकाशवाणी हुई है। बोला-

तो अवश्य जाओ थायस, अवश्य जाओ, मैं तुम्हें सहज आज्ञा देता हूँ। लेकिन मैं तेरा साथ न छोडूँगा। मैं भी इस दावत में तुम्हारे साथ चलूँगा। इतना जानता हूँ कि कहाँ बोलना और कहाँ चुप रहना चाहिए। मेरे साथ रहने से तुम्हें कोई असुविधा अथवा झेंप न होगी।

दोनों ग़ुलाम स्त्रियाँ अभी उसके आभूषण पहना ही रही थीं कि थायस खिलखिलाकर हँस पड़ी और बोली-

वह-धर्माश्रम के एक तपस्वी को मेरे प्रेमियों में देखकर, क्या कहेंगे?