पृष्ठ:अहंकार.pdf/१२

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उसका व्यवहार धार्मिकता के गर्व में हुया हुआ होता है। थारस पहले तो उससे भयभीत होती है। फिर उसके उपदेशों से उसके धार्मिक भाव का पुनः संस्कार होता है। 'मनन्तलीवन' की आशा उसे पापनाशी के साथ चलने पर प्रस्तुत कर देती है। पापनाशी उसे स्त्रियों के आश्रम में प्रविष्ट करके फिर अपने स्थान को लौट जाता है। पर उसके चित्त की शान्ति हो गई है। वासना की अज्ञात पीढ़ा उसके हृदय को व्यथित करती रहती है। उसका आत्मविश्वास उठ गया है, उसकी विवेक बुद्धि मन्द हो गई है। उसे दुस्स्वप्न दिखाई देते हैं। वह इस मानसिक अशान्ति से बचने के लिए एकान्त निवास करने की ठानता है और जाकर एक स्तम्भ पर आसन जमाता है। वहाँ से भी दुस्वप्न के कारण वह एक कव्र में आश्रय लेता है। वहीं उनकी जोज़िमस से भेंट होती है, और वह सन्त एन्टोनी के दर्शनों को चलता है। उसी स्थान पर उसे थायस के मरणासप्न मेने की ख़बर होती है। वह भागा भागा स्त्रियों के आश्रम में पहुॅचता है। उसके मानसिक कष्ट का वर्णन करने में लेखक ने अद्वितीय प्रतिभा दिखाई है। इसनी आवेशपूर्ण भाषा कदाचित ही सिी ने लिखी हो। कैसा अगाध प्रेम है जिसकी थाह वह अब तक स्वयं न पा सका था! उसका जीवन-संचित ईश्वर-विश्वास ग़ायब हो जाता है। वह ईश्वर को अपशब्द कहता हुया, सांसारिक भोग विलास को स्वर्ग और धर्म के सुखों से कहीं उत्तम, वांछनीय बत जाता हुआ हमसे सदैव के लिए विदा हो जाता है। यह अहंकार की सजीव मूर्ति है—पह विभाष एक क्षण के लिए भी इसका गला नहीं छोडता। निसियाल विधर्मी है, लेकिन विलासप्रियता के साथ वह कितना सहृदय, कितना सहिष्ण, कितना शान्त-प्रकृत है। उसकी विनय पूर्ण वातों का उत्तर जब पापनाशी देता है तो उसकी संकीर्णता पराकाष्टा को पहुँच जाती है। यह अहंकार उस समय भी उसकी गर्दन पर सवार रहता है। जब वह थायस के साथ नगर से प्रस्थान