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अहङ्कार


देवताओं की स्तुति के लिए। मेरे जीवन का यही उद्देश्य है।

डोरियन-हम यूक्राइटीज़ को बड़े आदर के साथ नमस्कार करते हैं, जो विरागवादियों में अव अकेले ही बच रहे हैं। हमारे बीच में वह किसी पुरुषा की प्रतिभा की भाँति गम्भीर, प्रौढ़, श्वेत, खड़े हैं। उनके लिए मेला भी निजन, शान्त स्थान है, और उनके मुख से जो शब्द निकलते हैं वह किसी के कानों में नहीं पड़ते।

यूक्राइटीज-डोरियन, यह तुम्हारा भ्रम है। सत्य विवेचन अभी संसार से लुप्त नहीं हुआ है। इस्कंद्रिया, रोम, कुस्तुन्तुनिया आदि स्थानों में मेरे कितने ही अनुयायी हैं। गुलामों की एक बड़ी संख्या और क़ैसर के कई भतीजों ने अब यह अनुभव कर लिया है कि इन्द्रियों को क्योंकर दमन किया जा सकता है, स्वच्छन्द जीवन कैसे उपलब्ध हो सकता है। वह सांसारिक विषयों से निर्लिप्त रहते हैं, और असीम आनन्द उठाते हैं। उनमें से कई मनुष्यों ने अपने सत्कर्मों द्वारा एपिक्टीटस और मारकस और लियस का पुनर्संस्कार कर दिया है। लेकिन अगर यही सत्य हो कि संसार से सत्कर्म सदैव के लिए उठ गया, तो इस क्षति से मेरे आनन्द में क्या बाधा हो सकती है, क्योंकि मुझे इसकी परवाह नहीं है कि संसार में सत्कर्म है या उठ गया। डोरियन, अपने आनन्द को अपने अधीन न रखना मूखों और मन्द-बुद्धि वालों का काम है। मुझे ऐसी किसी वस्तु की इच्छा नहीं है जो देवताओं की इच्छा के अनुकूल न हो और उन सभी वस्तुओं की इच्छा है जो विधाता की इच्छा के अनुकूल है। इस विधि से मैं अपने को उनसे अभिन्न बना लेता हूँ, और उनके निर्भ्रान्त संतोष में सहभागी हो जाता है। अगर सत्कर्मों का पतन हो रहा है तो हो, मैं प्रसन्न हूँ, मुझे कोई आपत्ति नहीं। यह निरापत्ति मेरे चित्त को आनन्द से भर देती है, क्योंकि यह मेरे तर्क या साहस की