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अहङ्कार


परमोज्वल कीर्ति है। प्रत्येक विषय में मेरी बुद्धि देव-बुद्धि का अनुसरण करती है, और नक़ल असल से कहीं मूल्यवान होती है। वह अविश्रान्त सद्चिन्ता और सदुद्योग का फल होती है।

निसियास-आपका आशय समझ गया आप अपने को ईश्वरीय इच्छा के अनुरूप बनाते हैं। लेकिन अगर उद्योग ही से सब कुछ हो सकता है, अगर लगन ही मनुष्य को ईश्वर-तुल्य बना सकती है, और साधनों से ही आत्मा परमात्मा में विलीन होता है, तो उस मेढक ने, जो अपने को फुलाकर बैल बना लेना चाहता था निस्सन्देह वैराग्य का सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त चरितार्थ कर दिया!

यूक्राइटीज़-निसियास, तुम मसखरापन करते हो। इसके सिवा तुम्हें और कुछ नहीं आता। लेकिन जैसा तुम कहते हो वही सही। अगर वह बैल जिसका तुमने उल्लेख किया है वास्तव में *[१] 'एपिस' की भाँति देवता है या उस पाताल लोक के बैल के संहश है जिसके मन्दिर ‡[२] के अध्यक्ष को हम यहाँ बैठे हुए देख रहे हैं और उस मेंढक ने सद्प्रेरणा से अपने को उस बैल के समतुल्य बना लिया, तो क्या वह बैल से अधिक श्रेष्ठ नहीं है? यह सम्भव है कि तुम उस नन्हे से पशु के साहस और पराक्रम की प्रशंसा न करो।

चार सेवकों ने एक जंगली सुअर, जिसके अभी तक बाल भी अलग नहीं किये गये थे, लाकर मेज पर रखा। चार छोटे-छोटे सुअर जो मैदे के बने हुए थे, मानों उसका दूध पीने के लिए उत्सुक हैं। इससे प्रगट होता था कि सुअर मादा है।

ज़ेनाथेमीज़ ने पापनाशी की ओर देखकर कहा-

मित्रों, हमारी सभा को आज एक नये मेहमान ने अपने

  1. * एक गाय की मूर्ति जिसे प्राचीन मिश्र के लोग पूज्य समझते थे।
  2. ‡ सेरापीज़, मृत्यु का देवता, जो बैल के आकार का था।