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अहङ्कार


शक्तियों में एक प्रकाश की थी और दूसरी अन्धकार की थी। विरोध होना अनिवार्य्य था। यह घटना संसार की सृष्टि के थोड़ें ही दिनों पश्चात् घटी। दोनों विरोधी शक्तियों में युद्ध छिड़ गया। ईश्वर अभी अपने कठिन परिश्रम के बाद विश्राम न करने पाये थे; आदम और हौवा, आदि पुरुष आदि स्त्री, अदन के बाग़ में नंगे घूमते और आनन्द से जीवन व्यतीत कर रहे थे। इतने में दुर्भाग्य से आइवे को सूझी कि इन दोनों प्राणियों पर और उनकी आनेवाली सन्तानों पर आधिपत्य जमाऊँ। तुरन्त अपनी दुरिच्छा को पूरा करने का प्रयत्न वह करने लगा। वह न गणित में कुशल था, न संगीत में, न उस शाख से परिचित था जो राज्य का संचालन करता है, न उस ललित कला से जो चित्त को मुग्ध करती है। उसने इन दोनों सरल बानकों की-सी बुद्धि रखनेवाले प्राणियों को भयंकर पिशाच लीलाओं से, शंकोत्पादक क्रोध से, और मेघगर्जनों से भयभीत कर दिया। आदम और हौवा अपने ऊपर उसकी छाया का अनुभव करके एक दूसरे से चिमट गये, और भय ने उनके प्रेम को और भी घनिष्ठ कर दिया। उस समय इस विराट संसार में कोई उनकी रक्षा करनेवाला न था। जिधर आँख उठाते थे उधर सन्नाटा दिखाई देता था। सर्प को उनकी यह निस्सहाय दशा देखकर दया आ गई, और उसने उनके अंतःकरण को बुद्धि के प्रकाश से आलोकित करने का निश्चय किया, जिसमें ज्ञान से सतर्क होकर वह मिथ्या भय और भयंकर प्रेतलीलाओं से चिन्तित न हों। किन्तु इस कार्य को सुचारु रूप से पूरा करने के लिए बड़ी सावधानी और बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी और पूर्वदम्पति की सरल हृदयता ने, इसे और भी कठिन बना दिया। किन्तु दयालु सर्प से न रहा गया। उसने गुप्त रूप से इन प्राणियों को उद्धार करने का निश्चय किया। आइवे डींग तो