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अहङ्कार


यह मारता था कि वह अन्तर्यामी है लेकिन यथार्थ में वह बहुत सूक्ष्मदर्शी न था। सर्प ने इन प्राणियों के पास आकर पहले उन्हें अपने पैरों की सुन्दरता और खाल की चमक से मुग्ध कर दिया। देह से भिन्न-भिन्न आकार बनाकर उसने उनकी विचारशक्ति को जागृत कर दिया। यूनान के गणित आचार्यों ने उन आकारों के अद्भुत गुणों को स्वीकार किया है। आदम इन आकारों पर हौवा की अपेक्षा अधिक विचारता था किन्तु जब सर्प ने उनसे ज्ञानतत्वों का विवेचन करना शुरू किया-उन रहस्यों का जो प्रत्यक्ष रूप से सिद्ध नहीं किये जा सकते-तो उसे ज्ञात हुआ कि आदम लाल मिट्टी से बनाये जाने के कारण इतना स्थूल बुद्धि था कि इन सूक्ष्म विवेचनों को ग्रहण नहीं कर सकता था, लेकिन हौवा अधिक चैतन्य होने के कारण इन विषयों को आसानी से समझ जाती थी। इसलिए सर्प से बहुधा अकेले ही इन विषयों का निरूपण किया करती थी, जिसमें पहले खुद दीक्षित होकर तब अपने पति को दीक्षित करे-

डोरियन महाशय ज़ेनाथेमीज़, क्षमा कीजियेगा, आपकी बात काटता हूँ। आपका यह कथन सुनकर मुझे शंका होती है कि सर्प उतना बुद्धिमान और विचारशील न था जितना आपने उसे बनाया है। यदि वह ज्ञानी होता तो क्या वह इस ज्ञान को हौवा के छोटे से मस्तिष्क में आरोपित करता जहाँ काफी स्थान न था? मेरा विचार है कि वह आइवे के समान ही मूर्ख और कुटिल था और हौवा को एकान्त में इसलिए उपदेश देता था कि स्त्री को बहकाना बहुत कठिन न था। आदमी अधिक चतुर और अनुभवशील होने के कारण, उसकी बुरी नीयत को ताड़ लेता। वहाँ उसकी दाल न गलती। इसलिए मैं सर्प की साधुता का क़ायल हूँ, न कि उसकी बुद्धिमत्ता का।