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अहङ्कार


थे और मेरे मुँह में पानी भर आता है। लेकिन जब वह सुधारस पान करके तृप्त हो जाता हूँ जिसकी महाशय कोटा वहाँ कोई कमी नहीं मालूम होती, और जिसके पिलाने में वह इतने उदार हैं, तो मेरी कल्पना वीररस में मग्न हो जाती है। योद्धाओं के वीर चरित्र आँखों में फिरने लगते हैं। घोड़ों के टापों और तलवार के झंकारों की ध्वनि कान में आने लगती है मुझे, लज्जा और खेद है कि मेरा जन्म ऐसे अधोगति के समय हुआ विवश होकर मैं भावना के ही द्वारा उस रस का आनन्द उठाता हूँ, स्वाधीनता देवी की आराधना करता हूँ और वीरों के साथ स्वयं वीर गति प्राप्त कर लेता हूँ।

कोटा-रोम के प्रजासत्तात्मक राज्य के समय मेरे पुरुषाओं ने ब्रूटस के साथ अपने प्राण स्वाधीनता देवी की भेंट किये थे। लेकिन यह अनुमान करने के लिए प्रमाणों की कमी नहीं है कि रोम निवासी जिसे स्वाधीनता कहते थे, वह केवल अपनी व्यवस्था आप करने का अपने ऊपर आप शासन करने का अधिकार था। मैं स्वीकार करता हूँ कि स्वाधीनवा सर्वोत्तम वस्तु है जिस पर किसी राष्ट्र को गौरव हो सकता है। लेकिन ज्यों-ज्यों मेरी आयु गुज़रती जाती है, और अनुभव बढ़ता जाता है, मुझे विश्वास होता जाता है कि एक सशंक और सुव्यवस्थित शासन ही प्रजा को यह गौरव प्रदान कर सकता है। गत चालीस वर्षों से मैं भिन्न-भिन्न उच्च पदों पर राज्य की सेवा कर रहा हूँ और मेरे दीर्घ अनुभव ने सिद्ध कर दिया कि जब शासक शक्ति निर्बल होती है, तो प्रजा को अन्यायों का शिकार होना पड़ता है। अतएव वह वाणी-कुशल, ज़मीन और आसमान के फुलाये मिलानेवाले व्याख्याता जो शासन को निर्बल और अपंगु बनाने की चेष्टा करते हैं, अत्यन्त निन्दनीय कार्य करते हैं। एक स्वेच्छा