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अहङ्कार


सकता। इनका पतन अब दूर नहीं है। आह! वह नगर जिन्हें यूनान की विलक्षण बुद्धि या रोमनिवासियों के अनुपम धैर्य्य ने निर्माण किया था, शीघ्रही मदोन्मत्त नर-पशुओं के पैरों तले रौंदे जायेंगे, लुटेंगे और ढाये जायेंगे। पृथ्वी पर न कलाकौशल का चिन्ह रह जायगा, न दर्शकों का, न विज्ञान का। देवताओं की मनोहर प्रतिमायें देवालयों में तहस-नहस कर दी जायेंगी। मानवहदय में भी उनकी स्मृति ना रहेगी। बुद्धि पर अन्धकार छा जायगा और यह भूमण्डल उसी अन्धकार में विलीन हो जायगा। क्या हमें यह आशा हो सकती है कि म्लेच्छ जातियाँ संसार में सुबुद्धि और सुनीति का प्रसार करेंगी? क्या जरमन जाति संगीत और विज्ञान की उपासना करेगी? क्या अरब के पशु अमर देवताओं का सम्मान करेंगे? कदापि नहीं। हम विनाश की ओर भयंकर गतिसे फिसलते चले जा रहे हैं। हमारा प्यारा मित्र जो किसी समय संसार का जीवनदाता था, जो भूमण्डल में प्रकाश फैलाता था, उसका समाधिस्तूप बन जायगा। वह स्वयं अन्धकार मे लुप्त हो जायगा। मृत्युदेव रासेपीज़ मानव भक्ति की अन्तिम भेंट पायेगा और मैं अन्तिम देवता का अन्तिम पुजारी सिद्ध हूँगा।

इतने में एक विचित्र भूर्ति ने परदा उठाया और मेहमानों के सम्मुख एक कुबड़ा, नाटा मनुष्य उपस्थित हुआ जिसकी चाँद पर एक बाल भी न था। वह एशिया निवासियों की भाँति एक लाख चोग़ा और असभ्य जातियों की भाँति लाल पाजामा पहने हुए था जिस पर सुनहरे बूटे बने हुए थे। पापनाशी उसे देखते ही पहचान गया और ऐसा भयभीत हुआ मानो आकाश से वज्र गिर पड़ेगा। उसने तुरन्त सिर पर हाथ रख लिये और थर-थर काँपने लगा। यह प्राणी मार्केस एरियन था जिसने ईसाई धर्म में नवीन