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अहङ्कार


का नाश न हो, नहीं तो संसार रहने के योग्य न रह जायगा।

यूक्राइटीज़–इस विषय पर धार्मिक भाव से विचार करना चाहिए। बुराई, बुराई है लेकिन संसार के लिए नहीं, क्योंकि इसका माधुर्य अनश्वर और स्थायी है। बल्कि उस प्राणी के लिए जो करता है और बिना किये रह नहीं सकता।

कोटा-जुपिटर साक्षी है, यह बड़ी सुन्दर उक्ति है।

युक्राइटीज़-एक मर्मज्ञ कवि ने कहा है कि संसार एक रंगभूमि है। इसके निर्माता ईश्वर ने हममे से प्रत्येक के लिए कोई न कोई अभिनय-भाग दे रखा है। यदि उसकी इच्छा है कि तुम भिक्षुक, राजा, या अपंग हो, तो व्यर्थ रो-रोकर दिन मत काटो, वरन् तुम्हे जो काम सौंपा गया है उसे यथासाध्य उत्तम विधि से पूरा करो।

निसियास-तब वो कोई झंझट ही नहीं रहा। लँगड़े को चाहिए कि लँगड़ाये, पागल को चाहिए कि खूब द्वन्द मचाये, जितना उत्पात कर सके करे। कुलटा को चाहिए कि जितने घर घालते बने घाले, जितने घाटों का पानी पी सके पिये, जितने हृदयों का सर्वनाश कर सके करे। देशद्रोही को चाहिए कि देश में आग लगादे, अपने भाइयों का गला कटवा दे, झूठे को झूठ का ओढ़ना बिछौना बनवाना चाहिए, हत्यारे को चाहिए कि रक्त की नदी बहा दे, और जब अभिनय समाप्त हो जाने पर सभी खिलाड़ी-राजा हों या रंक, न्यायी हों या अन्यायी, ख़ूनी ज़ालिम, सती, कामिनियाँ, कुलकलंकिनी स्त्रियाँ, सज्जन, दुर्जन, चोर, साहु सबके सब उन कवि महोदय के प्रशंसापात्र बन जायें, सभी समान रूप से सराहे जायँ। क्या कहना!

यूक्राइटीज़-निसियास, तुमने मेरे विचार को बिल्कुल विकृत कर दिया, एक तरुण युवती सुन्दरी को भयंकर पिशाचिनी बना