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अहङ्कार


अगर उसने भी रामचन्द्र को वनवास न दिया होता तो रावण का संहार कैसे होता और पृथ्वी पर से अधर्म का बीज क्योंकर हटता! दुर्योधन को द्रोपदी के चीरहरण के लिए कोसा जाता है पर उसने यह अधर्म न किया होता तो महाभारत क्योंकर होता, अधर्मी कौरव जाति का नाश कैसे होता और संसार को गीता का ज्ञानामृत क्योंकर प्राप्त होता?

मार्कस-परमात्मा को विदित था कि जूदा, बिना किसी दबाव के, कपट कर जायगा, अतएव उसने जूदा के पाप को मुक्ति के विशाल भवन का एक मुख्य स्तम्भ बना लिया।

ज़ेनाथेमीज़-मार्कस महोदय, मैने अभी जो कथन किया है, वह इस भाव से किया है मानों मसीह के सलीब पर चढ़ने से मानवजाति का उद्धार पूर्ण हो गया। इसका कारण यह है कि मैं ईसाइयों ही के ग्रंथों और सिद्धान्तों से उन लोगों की भाँति सिद्ध करना चाहता था, जो जूदा को धिकारने से बाज़ नहीं आते! लेकिन वास्तव में ईसा मेरी निगाह में तीन मुक्तिदाताओं में से केवल एक था। मुक्ति के रहस्य के विषय में यदि आप लोग जानने के लिए उत्सुक हों तो मैं बताऊँ कि संसार में उस समस्या की पूर्ति क्योंकर हुई।

उपस्थित जनों ने चारों ओर से 'हाँ, हाँ' की। इतने में बारह युवती बालिकायें, अनार, अंगूर, सेब आदि से भरे हुए टोकरे सिर पर रखे हुए, एक अंतर्हित वीणा के तालों पर पैर रखती हुईं, मन्द गति से सभा में आईं और टोकरों को मेज पर रखकर उलटे पाँव लौट गईं। वीणा बन्द हो गई और ज़ेनाथेमीज़ ने यह कथा कहनी शुरू की-

'जब ईश्वर की विचार-शक्ति ने, जिसका नाम 'योनिया' है, संसार की रचना समाप्त कर ली तो उसने उसका शासनाधिकार