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अहङ्कार


स्वर्ग-दूतों को दे दिया। लेकिन इन शासकों में वह विवेक न था जो स्वामियों में होना चाहिए। जब उन्होंने मनुष्यों की रूपवती कन्यायें देखीं तो कामातुर हो गये; संध्या समय कुएँ पर अचानक आकर उन्हें घेर लिया, और अपनी कामवासना पूरी की। इस संयोग से एक अपरड जाति उत्पन्न हुई जिसने संसार में अन्याय और क्रूरता से हाहाकार मचा दिया, पृथ्वी निरपराधियों के रक्त से तर हो गई, बेगुनाहों की लाशों से सड़कें पट गईं अपनी सृष्टि की यह दुर्दशा देखकर योनिया अत्यन्त शोकातुर हुई।

उसने वैराग्य से भरे हुए नेत्रों से संसार पर दृष्टिपात की और लम्बी साँस लेकर कहा-यह सब मेरी करनी है, मेरे पुत्र विपत्ति-सागर में डूबे हुए हैं और मेरे ही अविचार से। उन्हें मेरे पापों का फल भोगना पड़ रहा है और मैं इसका प्रायश्चित्त करूँगी। स्वयं ईश्वर, जो मेरे ही द्वारा विचार करता है, उनमें आदिम सत्यनिष्ठा का संचार नहीं कर सकता। जो कुछ हो गया हो गया, यह सृष्टि अनन्तकाल तक दूषित रहेगी। लेकिन कम से कम मैं अपने बालकों को इस दशा में न छोड़ूँगी। उनकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। यदि मैं उन्हें अपने समान सुखी नहीं बना सकती तो अपने को उनके समान दुखी तो बना सकती हूँ। मैंने ही उन्हें देहधारी बनाया है जिससे उनका अपकार होता है; अतएव मैं स्वयं उन्हीं की-सी देह धारण करूँगी और उन्हीं के साथ जाकर रहूँगी।

यह निश्चय करके थोनिया आकाश से उतरी और यूनान की एक स्त्री के गर्भ में प्रविष्ट हुई। जन्म के समय वह नन्हीं-सी दुर्बल प्राणहीन शिशु थी। उसका नाम हेलेन रखा गया। उसकी बाल्यावस्था बड़ी तकलीफ से कटी, लेकिन युवती होकर वह अतीव