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अहङ्कार

सुन्दरी रमणी हुई, जिसकी रूप शोमा अनुपम थी। यही उसकी इच्छा थी क्योंकि वह चाहती थी कि उसका नश्वर शरीर घोरतम लिप्साओं की परीक्षाग्नि में जले। कामलोलुप और उद्दण्ड मनुष्यों से अपहरित होकर उसने समस्त संसार के व्यभिचार, बलात्कार और दुष्टता के दण्डस्वरूप, सभी प्रकार की अमानुषीय यातनायें सहीं, और अपने सौन्दर्य द्वारा, राष्ट्रों का संहार कर दिया, जिस में ईश्वर भूमंडल के कुकर्मों को क्षमा कर दे। और वह ईश्वरीय विचारशक्ति, वह योनिया, कभी इतनी स्वर्गीय शोभा को प्राप्त न हुई थी, जब वह नारि-रूप धारण करके, योद्धाओं और ग्वालों को यथावसर अपनी शैय्या पर स्थान देती थी। कविजनों ने उसके दैवी महत्व का अनुभव करके ही उसके चरित्र का इतना शान्त, इतना सुन्दर, इतना घातक चित्रण किया है और इन शब्दों में उसे सम्बोधन किया है-तेरी आत्मा निश्चल सागर की भाँति शांत है!

इस प्रकार प्रश्चाताप और दयाने योनिया से नीच-से-नीच कर्म कराये, और दारुण दुःख झेलवाया। अन्त में उसकी मृत्यु हो गई और उसकी जन्मभूमि में अभी तक उसकी क़ब्र मौजूद है। उसका मरना आवश्यक था जिसमें वह भोग-विलास के पश्चात् मृत्यु की पीड़ा का अनुभव करे और अपने लगाये हुए वृक्ष के कड़ुए फल चखे। लेकिन हेलेन के शरीर को त्याग करने के बाद उसने फिर स्त्री का जन्म लिया और फिर नाना प्रकार के अपमान और कलंक सहे। इसी भाँति जन्म जन्मान्तरों से यह पृथ्वी का पाप-भार अपने ऊपर लेती चली आती है। और उसका यह अनन्त आत्मसमर्पण-निष्फल न होगा। हमारे प्रेम-सूत्र में बँधी हुई वह हमारी दशा पर रोती है, हमारे कष्टों से पीड़ित होती है, और अन्त में वह अपना और अपने साथ हमारा उद्धार करेगी और हमे अपने