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अहङ्कार

डोरियन उसके पास सेड्रोसिया के पास पहुँचा जिसने उसे इशारे से अपने पास बुलाया था। उसके पास जाते ही उसके स्थान पर ज़ेनाथेमीज़ आ पहुँचा और थायस के कपोलों पर अपना प्रेम अंकित कर दिया। थायस ने क्रुद्ध होकर कहा मैं तुम्हें इससे अधिक धर्मात्मा समझती थी।

ज़ेनाथेमीज़-मैं सिद्ध हूँ और सिद्ध-गण किसी नियम की पालन नहीं करते।

थायस-लेकिन उन्हें यह भय नहीं है कि स्त्री के आलिंगन से तुम्हारी आत्मा अपवित्र हो जायगी?

ज़ेनाथेमीज़-देह के भ्रष्ट होने से आत्मा भ्रष्ट नहीं होती। आत्मा को पृथक रख कर, विषयभोग का सुखा उठाया जा सकता है।

थायस-तो आप यहाँ से खिसक जाइये। मैं चाहती हूँ कि जो मुझे प्यार करे वह तन-मन से प्यार करे। फिलॉसफर सभी बुड्ढे बकरे होते हैं। एक एक करके सभी दीपक बुझ गये। उषा की पीली किरणें जो परदों के दरारों से भीतर आ रही थीं मेहमानों की चढ़ी हुई आँखों और सौंलाये हुए चेहरों पर पड़ रही थी। एरिस्टोबोलस चेरियास की पराल में पड़ा खर्राटे ले रहा था। ज़ेनाथेमीज़ महोदय, जो धर्म और अधर्म की सत्ता के क़ायल थे, फ़िलिना को हृदय से लगाये पड़े हुए थे। संसार से विरक्त डोरियन महाशय ड्रोसिया के आवरण हीन वक्ष पर शराब की बूंदें टपकाते थे जो गोरी छाती पर लालों की भाँति नाच रही थी और वह विरागी पुरुष उन बूंदों को अपने ओठ से पकड़ने की चेष्टा कर रहा था। ड्रोसिया खिलखिला रही थी और बूंदें गुदगुदे वक्ष पर छाया की भाँति डोरियन के ओठों के, सामने से भागती थीं।