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अहङ्कार

पूज्य पिता, आपकी जैसी इच्छा हो, वह कीजिए । मैं भी जानती है कि बहुधा प्रेतगण निर्जीव वस्तुओं में रहते हैं । रात की सजावट की कोई कोई वस्तु बातें करने लगती हैं, किन्तु शब्दों में नहीं, या तो थोड़ी-थोड़ी देर में खट-खट की आवाज से था प्रकाश को रेखायें प्रस्फुटित करके। और एक विचित्र वात सुनिए । पूज्य पिता, आपने परियों के कुल के द्वार पर, दाहिनी ओर एक नग्न स्त्री की मूर्ति को ध्यान से देखा है । एक दिन मैने आखों से देखा कि उस मूर्ति ने जीवित प्राणी के समान अपना सिर फेर लिया और फिर एक पलमें अपनी पूर्व दशा में आ गई। मैं भयभीत हो गई । जब मैंने निसियास से यह अद्भुत लीला बयान की तो यह मेरी हँसी उड़ाने लगा। लेकिन उस मूर्ति में कोई जादू अवश्य है क्योंकि उसने एक विदेशी मनुष्य को, जिस पर मेरे सौन्दर्य्य का जादू कुछ असर न कर सका था, अत्यन्त प्रबल इच्छाओं से परिष्कृत कर दिया। इसमें कोई सदेह नहीं है कि इस घर की सभी वस्तुओं मे प्रेतों का बसेरा है और मेरे लिये यहां रहना जान-जोखिम था, क्योंकि कई आदमी एक पीतल की मूर्ति से आलिंगन करते हुए प्राण खो बैठे हैं। तो भी उन वस्तुओं को नष्ट करना सो अद्वितीय कलानैपुण्य प्रदर्शित कर रही है, और मेरी क़ालीनों ओर परदों को जलाना घोर अन्याय होगा। यह अद्भुत वस्तुयें सदैव के लिये संसार से लुप्त हो जायेंगी। उनमे से कई इतने सुन्दर रंगों से सुशोभित है कि सनकी शोमा अवर्णनीय है, और लोगों ने उन्हें मुझे उपहार देने के लिये अतुल धन व्यय किया था। मेरे पास अमूल्य प्याले, मूर्तियाँ और चित्र हैं। मेरे विचार में उनको जलाना भी अनुचित होगा। लेकिन मैं इस विषय में कोई आग्रह नहीं करती। पूज्य पिता, आपकी जैसी इच्छा हो कीजिये।