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अहङ्कार

यह कह कर वह पापनाशी के पीछे-पीछे अपने गृह-द्वार पर पहुँची जिस पर अगणित मनुष्यों के हाथों से हारों और पुष्प- मालाओं की भेंट पा चुकी थी, और जब द्वार खुला लो उसने द्वारपाल से कहा कि घर के समस्त सेवकों को बुलाओ। पहले चार भारतवासी आये जो रसोई का काम करते थे। वह सब साँवले रंग के और काने थे। थायस को एक ही जाति के चार गुलाम, और चारों काने, बड़ी मुशकिल से मिले पर यह उनकी एक दिल्लगी थी और जब तक चारों मिल न गये थे उसे चैन न आता,था। जब वह मेज पर भोज्य पदार्थ चुनते थे तो मेहमानों को उन्हें देखकर बड़ा कुतूहल होता था। थायस प्रत्येक का वृत्तान्त उसके मुख से कहलाकर मेहमानों का मनोरंजन करती थी। इन चारों के बाद उनके सहायक आये। तब बारी-बारी से साईस, शिकारी, पालकी उठाने वाले हरकारे जिनकी मांस- पेशियाँ अत्यन्त सुदृढ़ थीं, दो कुशल माली, छ: भयंकर रूप के हबशी, और तीन यूनानी गुलाम, जिनमें एक वैयाकरणी था, दूसरा कवि और तीसरा गायक सब आकर एक लम्बी कतार में खड़े हो गये । उनके पीछे हब्शिनें आई जिनकी बड़ी-बड़ी गोल आँखों में शंका, उत्सुकता और उद्विग्नता झलक रही थी, और जिनके मुख कानों तक फटे हुए थे। सबके पीछे छः तरुणी रूपवती दासियाँ, अपनी नकाबों को सँभालती और धीरे-धीरे बेड़ियों से जकड़े हुये पाँव उठाती आकर उदासीन भाव से खड़ी हुई।

जब सब के सब जमा हो गये तो थायस ने पापनाशी की ओर उगली उठाकर कहा—

देखो, तुम्हे यह महात्मा जो आज्ञा दें उसका पालन करो। यह ईश्वर के मन हैं । जो इनकी अवज्ञा, करेगा वह खड़े-खड़े भर जायगा।