पृष्ठ:अहंकार.pdf/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३५
अहङ्कार

उसने सुना था और इस पर विश्वास करती थी कि धर्माश्रम के सात जिस प्रमाणे पुरुष पर कोंप करके छड़ी से मारते थे उसे निगलने के लिये पृथ्वी अपना मुँह खोल देती थी।

पापनाशी ने यूनानी दासों और दासियों को सामने से हटा दिया, वह अपने पर उनकी साया भी न पड़ने देना चाहता था, और शेष सेवकों से कहा—

यहाँ बहुत-सी लकड़ी जमा करो, उसमें आग लगा दो और जब अग्नि की ज्वाला उठने लगे तो इस घर के सब साज-सामान मिट्टी के बर्तन से लेकर सोने के थालों तक, टाट के टुकड़े से लेकर बहुमूल्य कालीनों तक, सभी मूर्तियाँ, चित्र, गमले, गड्डमड्ड करके इसी चिता में डाल दो, कोई चीज बाकी न बचे।

यह विचित्र आज्ञा सुनकर सबके सब विस्मित हो गये, और अपनी स्वामिनी की ओर कातरनत्रों से ताकते हुये मूर्तिवत् खड़े रह गये । वह अभी इसी अकर्मण्य दशा मे अवाक और निश्चल खड़े थे, और एक दूसरे को कुहनियाँ गढ़ाते थे, मानों वह इस हुक्म को दिल्लगी समझ रहे हैं कि पापनाशी ने रौद्ररूप धारण करके कहा—

क्यों विलम्ब हो रहा है।

इसी समय थायस नंगे पैर, छिटके हुए केश कन्धों पर लहरासी, घर में से निकली। वह भद्दे मोटे वस्त्र धारण किये हुये थी, जो उसके देहस्पर्श मात्र से, स्वर्गीय, कामोत्तेजक सुगंधि से परिपूरित जान पड़ते थे। उसके पीछे एक माली एक छोटी-सी हाथी दांत की मूर्ति शांती से लगाये लिये जाता था।

पापनाशी के पास आकर थायस ने मूर्ति उसे दिखाई और कहा—

पूज्य पिता, क्या इसे भी भाग में डाल दूँ । प्राचीन समय