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अहङ्कार

से आ रहा है। तब उसी अर्धनग्न दशा में बाहर निकल पड़े और अलाव के चारों ओर जमा हो गये।

यह माजरा क्या है ? यही प्रश्न एक दूसरे से करता था।

इन लोगों में वह व्यापारी थे जिनसे थायस इत्र, तेल, कपडे श्रादि लिया करती थी, और वह सचिन्त भाव से, मुंह लटकाये ताक रहे थे। उनकी समझ मे कुछ न आता था कि यह क्या हो रहा है। कई विषय भोगी पुरुष जो रात भर के विलास के बाद सिर पर हार लपेटे, कुरते पहने, अपने गुलामों के पीछे जाते हुये, उधर से निकले तो यह दृश्य देखकर ठिठक गये और जोर जोर से तालियाँ बजाकर चिल्लाने लगे। धीरे धीरे कुतूहल वश और लोग आ गये और बड़ी भीड़ जमा हो गई। तब लोगों को ज्ञात हुआ कि थायस धर्माश्रम के तपस्वी पापनाशी के आदेश से अपनी समस्त सम्पत्ति जलाकर किसी आश्रम में प्रविष्ट होने जा रही है।

दूकानदारों ने विचार किया—

थायस यह नगर छोड़ कर चली जा रही है। अब हम किसके हाथ अपनी चीजें बेचेंगे? कौन हमें मुँह-माँगे दाम देगा? यह पड़ा घोर अनर्थ है। थायस पागल हो गई है, क्या ? इस योगी ने अवश्य उस पर कोई मंत्र डाल दिया है, नहीं वो इतना सुख- विलास छोड़कर तपस्विनी बन जाना सहन नहीं है। उसके बिना हमारा निर्वाह क्योंकर होगा ! वह हमारा सर्वनाश किये डालती है। योगी को क्यों ऐसा करने दिया जाय? आखिर कानून किस लिए है? क्या इस्कन्द्रिया में कोई नगर का शासक नहीं है ? थायस को हमारे बाल बच्चों की जरा भी चिन्ता नहीं है । उसे शहर में रहने के लिए मजबूर करना चाहिए । धनी लोग इसी भाँति नगर छोड़ कर चले जायेंगे तो हम रह चुके । हम राज्यकर कहाँ से देंगे।