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अहङ्कार

युवक गण को दूसरी प्रकार की चिन्ता थी—

अगर थायस इस भाँति निर्दयता से नगर से जायगी तो नाट्य- शालाओं को जीवित कौन रखेगा? शीघ्र ही उनमे सन्नाटा छा जायगा,हमारे मनोरंजन की मुख्य सामग्री गायव हो जायगी, हमारा जीवन शुष्क और नीरस हो जायगा। वह रंगभूमि का दीपक, आनन्द, सम्मान, प्रतिभा और प्राण थी । जिन्होंने उसके प्रेम का आनन्द नहीं उठाया था, वह उसके दर्शन मात्र ही से कृतार्थ हो जाते थे । अन्य स्त्रियों से प्रेम करते हुए भी वह हमारे नेत्रों के सामने उपस्थित रहती थी। हम विलासियों की तो जीवनाधार थी । केवल यह विचार कि वह इस नगर में उपस्थित है, हमारी वासनाओं को उद्दीप्त किया करता था। जैसे जल की देवी वृष्टि करती है, अग्निकी देवी जलाती है, उसी भाँति यह आनन्द की देवी हृदय में आनन्द का संचार करती थी।

समस्त नगर में हलचल मचा हुआ था। कोई पापनाशी को गालियाँ देता था, कोई ईसाई धर्म को, और कोई स्वयं प्रभु मसीह को सलवाते सुनाता था और थायस के त्याग की भी बड़ी तीव्र आलोचना हो रही थी। ऐसा कोई समाज न था जहाँ कुहराम न मचा हो।

'यों मुँह छिपा कर जाना लज्जास्पद है!'

'यह कोई भलमनसाहत नहीं है"

'अजी वह तो हमारे पेट की रोटियाँ छीने लेती है!'

'वह आने वाली सन्तान को अरसिक बनाये देती है। अब उन्हें रसिकता का उपदेश कौन देगा?

'अजी, उसने वो अभी हमारे हारों के दाम भी नहीं दिये।'

'मेरे भी ५० जोड़ों के दाम आते हैं।'

'सभी का कुछ न कुछ उस पर आता है।