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अहङ्कार

युवक—हाँ हूँ तो, बहुत दिनों से।

वृद्ध—तो जाकर उसे रोकते क्यों नहीं ?

युवक—और क्या तुम समझते हो उसे जाने दूँगा? मन में यही निश्चय करके आया हूँ। शेखी तो नहीं मारता लेकिन इतना तो मुझे विश्वास है कि मैं उसके सामने जाकर खड़ा हो जाऊँगा तो वह इस बँदरमुँहे पादरी की अपेक्षा मेरी बातों पर अधिक ध्यान देगी।

वृद्ध—तो जल्दी जाओ। ऐसा न हो कि तुम्हारे पहुँचते-पहुँचते वह सवार हो जाय।

युवक—इस भीड़ को हटाओ।

वृद्ध व्यापारी ने 'हटो, जगह दो', का गुल मचाना शुरू किया और युवक घूँसों और ठोकरों से आदमियों को हटाता, वृद्धों को किराता, बालकों को कुचलता, अन्दर पहुँच गया और थायस का हाथ पकड़कर धीरे से बोला—

प्रिये, मेरी ओर देखो! इतनी निष्ठुरता ! याद करो तुमने मुझसे-कैसी-कैसी बाते की थीं, क्या-क्या वादे किये थे, क्या अपने वादों को भूल जाओगी ; क्या प्रेम का बन्धन इतना ढीला हो सकता है?

थायस अभी कुछ, जवाव न देने पाई थी कि पापनाशी लपक कर उसके और थायस के बीच में खड़ा हो गया और डाटकर बोला—

दूर हट पापी कहीं का! खबरदार जो उसकी देह को स्पर्श किया वह अब ईश्वर की है, मनुष्य उसे नहीं छू सकता।

युवक ने कड़क कर कहा—हट यहाँ से, बनमानुस ! क्या तेरे कारण अपनी प्रियतमा से न बोलूँ ? हट जाओ, नहीं तो यह डाढ़ी पकड़ कर तुम्हारी गन्दी खाश को आग के पास खींच ले