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अहङ्कार

किन्तु स्वयं उन्हें फेकने का साहस न करके उसने वह सब चीजें भिक्षुकों के हाथों में दे दी। फिर क्या था। पत्थरों की वर्षा होने लगी और एक घोंघा पापनाशी के चेहरे पर ऐसा आकर बैठा कि घाव हो गया। रक्त की धारा पापनाशी के चेहरे पर बह बहकर त्यागिनी थायस के सिर पर टपकने लगी, मानों उसे रक्त के बप्तीसमा से पुन: संस्कृत किया जा रहा था। थायस को योगी ने इतनी जोर से भेंच लिया था कि उसका दम-घुट रहा था और योगी के खुर- खुरे वस्त्र से उसका कोमल शरीर चिला जाता था। इस अस- मंजस मे पड़े हुए, घृणा और क्रोध से उसका मुख लाल हो रहा था।

इतने में एक मनुष्य भड़कीले वस्त्र पहन, जंगनी फूलों की एक माला सिर पर लपेटे भीड़ को हटाता हुआ आया और चिल्ला कर बोला—

ठहरो ठहरो, यह उत्पात क्यों मचा रहे हो। यह योगी मेरा भाई है।

यह निसियास था, जो वृद्ध यूक्राइटोज़ को क़ब्र में सुलाकर इस मैदान में होता हुआ अपने घर लौटा जा रहा था। देखा तो अलाव जल रहा है, उसमें भाँति-भाँति की बहुमूल्य वस्तुएँ पड़ी सुलग रही हैं, थायस एक मोटी चादर ओढ़े खड़ी है और पाप- नाशी पर चारों ओर से पत्थरों की बौछार हो रही है । वह यह दृश्य देखकर विस्मित तो नहीं हुआ, वह आवेशों के वशीभूत न होता था। हाँ ठिठक गया और पापनाशी को इस आक्रमण से बचाने की चेष्टा करने लगा।

उसने फिर कहा—

मैं मना कर रहा हूँ, ठहरो, पत्थर न फेंको। यह योगी मेरा प्रिय सहपाठी है। मेरे प्रिय मित्र पापनाशी पर आत्याचार मत करो।