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अहङ्कार

किन्तु उसकी ललकार का कुछ असर न हुआ। जो पुरुष नैयायिकों के साथ बैठा हुआ बाल की खाल निकालने ही में कुशल हो, उसमें वह नेतृत्वशक्ति कहाँ जिसके सामने जनता के सिर झुक जाते हैं। पत्थरों और घोंघों की दूसरी बौछार पड़ी, किन्तु पापनाशी थायस को अपनी देह से रक्षित किये हुए पत्थरों की चोटें खाता था और ईश्वर को धन्यवाद देता था जिसकी दया- दृष्टि उसके घावों पर मरहम रखती हुई जान पड़ती थी। निसि- यास ने जब देखा कि यहाँ मेरी कोई नहीं सुनता और मन में यह समझ कर कि मैं अपने मित्र की रक्षा न तो पल से कर सकता हूँ न वाक्य-चातुरी से, उसने सव कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया । (यद्यपि ईश्वर पर उसे अणुमात्र भी विश्वास न था।) सहसा उसे एक उपाय सूझा । इन प्राणियों को वह इतना नीच समझता था कि उसे अपने उपाय की सफलता पर जरा भी सन्देह न रहा । उसने तुरन्त अपनी थैली निकाल ली, जिसमें रुपये और अशर्फियाँ भरी हुई थीं। वह बड़ा उदार, विलास- प्रेमी पुरुष था, और उन मनुष्यों के समीप जाकर जो पत्थर फेंक रहे थे, उनके कानों के पास मुद्राओं को उसने खनखनाया। पहले तो वे उससे इतने झल्लाये हुए थे, लेकिन शीघ्र ही सोने की झंकार ने उन्हें लुब्ध कर दिया, उनके हाथ नीचे को लटक गये । निसियास ने जब देखा कि उपद्रवकारी उसकी ओर आकर्षित हो गये तो उसने कुछ रुपये और मोहरें उनकी ओर फेंक दीं। उनमें से जो ज्यादा लोभी प्रकृति के थे वह झक-झुककर उन्हें चुनने लगे। निसियास अपनी सफलता पर प्रसन्न होकर मुट्टियाँ भर-भर रुपये आदि इधर-उधर फेंकने लगा। पक्की ज़मीन पर अशर्फियों के खनकने की आवाज सुनकर पापनाशी के शत्रुओं का दल भूमि पर सिजदे करने लगा। भिक्षुक, गुलाम,

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