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अहङ्कार

हुए ऊँट की भाँति झुककर कुछ जुगाली-सी करोगे, कदाचित् कोई एक हजार बार के हवाए हुए शब्दाडम्बर को फिर से चबा- ओगे, और संध्या समय बिना वधारी हुई भाजी खाकर ज़मीन पर लेट रहोगे । किन्तु बन्धुवर, यद्यपि हमारे और तुम्हारे मार्ग पृथक हैं, यद्यपि हमारे और तुम्हारे कार्यक्रम में बड़ा अन्दर दिखाई पड़ता है, लेकिन वास्तव में हम दोनों एक ही मनोभाव के अधीन काय कर रहे हैं—वही जो समस्त मानव-कृत्यों का एक- मात्र कारण है। हम सभी सुख के इच्छुक हैं, सभी एक ही लक्ष्य पर पहुँचना चाहते हैं। समी का अभीष्ट एक ही है—आनन्द, अप्राप्य आनन्द, असम्भव आनन्द । यह मेरी मूर्खता होगी अगर मैं कहूँ कि तुम ग़लती पर हो, यद्दपि मेरा विचार है कि मैं सत्य पर हूॅ।

और प्रिये थायस, तुमसे भो मैं यही कहूँगा कि जाओ और अपने जिन्दगी के मजे उठाओ, और यदि यह बात असम्भव न हो, तो त्याग और तपस्या में उससे अधिक आनन्द-जाम करो जितना तुमने भोग आर लिबास में किया है। सभी बातों का विचार करके मैं कह सकता हूँ कि तुम्हारे ऊपर लोगों को हसद होता था, क्योंकि यदि पापनाशी ने और मैंने अपने समस्त जीवन में एक ही एक प्रकार के आनन्द का उपभोग किया है, तो, थायस, तुमने अपने जीवन में इतने भिन्न-भिन्न प्रकार के आनन्दों का आस्वादन किया है जो विरले ही किसी मनुष्य को प्राप्त हो सकते हैं । मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि एक घण्टे के लिये मैं बन्धु पापनाशी की तरह संत हो जाता। लेकिन यह सम्भव नहीं । इसलिये तुमको भी विदा करता हूँ, जाओ जहाँ प्रकृति की गुप्त शक्तियाँ और तुम्हारा भाग्य तुम्हें ले जाय ! जाओ तुम्हारी इच्छा हो, निसियास की शुभेच्छायें तुम्हारे साथ रहेंगी।