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अहङ्कार

उसका शेष रास्ता इस वाद में कट गया, लेकिन इससे उसके चित्त को शांति न मिली, और जब वह घर पर पहुॅचा तो उसका मन विवादपूर्ण विचारों से भरा हुआ था। उसकी दोनों युवती दासियाँ प्रसन्न, हँस-हँसकर टेनिस खेल रही थीं। उनकी हास्य- ध्वनि ने अत में उसके दिल का बोझ हलका किया।

पापनाशी और थायस भी शहर से निकलकर समुद्र के किनारे किनारे चले। रास्ते में पापनाशी बोला—

थायस, इस विस्तृत सागर का जल भी तेरी कालिमाओं को नहीं धो सकता।

यह कहते कहते उसे अनायास क्रोध आ गया। थायस को धिक्कारने लगा—

तू कुतियों और शूकरियों से भा भ्रष्ट है, क्यों कि तूने उस देह को जो ईश्वर ने तुझे इस हेतु दिया था कि तू उसकी मूर्ति स्थापित करे, विधर्मियों और म्लेच्छों द्वारा दलित कराया है। और तेरा दुराचरण इतना अधिक है कि तू विना अंतःकरण में अपने प्रति घृणा का भाव उत्पन्न किये न ईश्वर की प्रार्थना कर सकती है न बन्दना।

धूप के मारे जमीन से आँच निकल रही थी, और थायस अपने नये गुरु के पीछे सिर झुकाये पथरीली सड़कों पर चली जा रही थी। थकान के मारे उसके घुटनों में पीड़ा होने लगी, ओर कट सूख गया। लेकिन पापनाशी के मन में दयाभाव का जागना वा दूर रहा,(जो दुरात्माओं को भी नर्म कर देता है,) वह उलटे उस प्राणी के प्रायश्चित पर प्रसन्न हो रहा था जिसके पापों का वारापार न था। वह धर्मोत्साह से इतना उत्तेजित हो रहा था कि उस देह को लोहे के सांगों से छेदने में भी उसे संकोच न होता जिसका सौन्दर्य उसकी कलुषता का मानो उज्ज्वल प्रमाण