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अहङ्कार

था। ज्यों-ज्यों वह विचार में मग्न होता था उसका प्रकोप और भी प्रचंड होता जाता था। जब उसे याद आता था कि निसि- यास उसके साथ सहयोग कर चुका है तो उसका रक्त खोलने लगता था और ऐसा जान पड़ता था कि उसकी छाती फट जायेगी। अपशब्द उसके ओठों पर आ-आकर रुक जाते थे और वह केवल दाँत पीस-पीसकर रह जाता था। सहसा वह उछलकर, विकराल रूप धारण किये हुए उसके सम्मुख खड़ा हो गया और उसके मुँह पर थूक दिया । उसकी तीव्र दृष्टि थायस के हृदय से चुभी जाती थी।

थायस ने शान्तिपूर्वक अपना मुँह पोंछ लिया और पापनाशी के पीछे चलती रही। पापनाशी उसकी ओर ऐसी कठोर दृष्टि से ताकता था मानो वह सदेह नरक है। उसे यह चिन्ता हो रही थीं कि मैं इससे प्रभु मसीह का बदला क्योंकर लें क्योंकि थायस, ने मसीह को अपने कुकृत्यों से इतना उत्पीडित किया था कि उन्हें, स्वयं उसे दण्ड देने का कष्ट न उठाना पड़े । अकस्मात् उसे रुधिर की एक बूँद दिखाई दी जो थायस के पैर से बहकर मार्ग पर गिरी थी। उसे देखते ही पापनाशी का हृदय दया से प्लावित हो गया, उसकी कठोर प्राकृति शान्त हो गई। उसके हृदय मे एक ऐसा भाव प्रविष्ट हुआ जिससे वह अभी अनभिज्ञ था; वह रोने नगा, सिसकियों का तार बँध गया, तब वह दौड़कर उसके सामने माथा टेककर बैठ गया और उसके चरणों पर गिरकर कहने लगा—

बहिन, बहिन, मेरी माता, मेरी देवी—और उसके रक्तप्ला वित चरणों को चूमने लगा।

तब उसने शुद्ध हृदय से यह प्रार्थना की—

ऐ स्वर्ग के दूतो ! इस रक्त की बूँद को सावधानी से उठाओ और इसे परम पिता के सिंहासन के सम्मुख ले जाओ! ईश्वर