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अहङ्कार

के इस पवित्र भूमि पर, जहाँ यह रक्त बहा है, एक अलौकिक पुष्प-वृक्ष उत्पन्न हो, उसमें स्वर्गीय सुगन्धयुक्त फूल खिलें और जिन प्राणियों की दृष्टि उस पर पड़े, और जिनकी नाक में उसकी सुगन्ध पहुॅचे, उनके हृदय शुद्ध और उनके विचार पवित्र हो जायॅ । थायस, परमपूज्या थायस! तुझे धन्य है ! आज तूने वह पद प्राप्त कर लिया जिसके लिये बड़े-बड़े सिद्ध योगी भी लालायित रहते हैं।

जिस समय वह यह प्रार्थना और शुभाकांक्षा करने में मग्न था एक लड़का अपने गधे पर सवार जाता हुआ मिला। पाप- नाशी ने उसे उतरने की आज्ञा दी ; थायस को गधे पर बिठा दिया और तब उसकी बागडोर पकड़कर ले चला। सूर्य्यास्त के समय वे एक नहर पर पहुॅचे जिस पर सघन वृक्षों का साया था। पापनाशी ने गधे को एक छुहारे के वृक्ष से बाँध दिया, और एक काई से ढके हुए चट्टान पर बैठकर उसने एक रोटी निकाली और उसे नमक और तेल के साथ दोनों ने खाया, चिल्लू से ताजा पानी पिया और ईश्वरीय विषय पर सम्भाषण करने लगे।

थायस बोली—

पूज्य पिता, मैंने आज तक कभी ऐसा निर्मल जल नहीं पिया, और न ऐसी प्राणप्रद, स्वच्छ वायु में सांस लिया ; मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है कि इस समीरण में ईश्वर की ज्योति प्रवाहित हो रही है।

पापनाशी बोला—

प्रिय बहन, देखो संध्या हो रही है। निशा की सूचना देनेवाली श्यामलता पहाड़ियों पर छाई हुई है। लेकिन शीघ्र ही मुझे ईश्वरीय ज्योति इश्वरीय उषा के सुनहरे प्रकाश में चम-