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अहङ्कार

कती हुई दिखाई देगी, शीघ्र ही तुझे अनन्त प्रभात के गुलाब पुष्पों की मनोहर लालिमा आलोकित होती हुई दृष्टिगोचर होगी।

दोनों रात भर चलते रहे। अर्धचन्द्र की ज्योति लहरों के उज्ज्वल मुकुट पर जगमगा रही थी, नौकाओं के सुफेद पाल उस शान्तिमय ज्योत्सना में ऐसे जान पड़ते थे मानो पुनीत आत्मायें स्वर्ग को प्रयाण कर रही हैं। दोनों प्राणी स्तुति और भजन गाते हुए चले जाते थे। थायस के कंठ का माधुर्य, पापनाशी के पचम ध्वनि के साथ मिश्रित होकर ऐसा जान पड़ता कि सुन्दर वस्त्र पर टाट का बखिया कर दिया गया है। जब दिनकर ने अपना प्रकाश फैलाया, तो उनके सामने लाइबिया की मरुभूमि एक विस्तृत सिंहचर्म की भाँति फैली हुई दिखाई दी। मरुभूमि के उस सिरे पर कई छुहारे के वृक्षों के मध्य में कई सुफेद झोपडियाँ प्रभात के मन्द प्रकाश में झलक रही थीं।

थायस ने पूछा—

पूज्य पिता, क्या वह ईश्वरीय ज्योति का मन्दिर है ?

'हाँ प्रिय बहन, मेरी प्रिय पुत्री, वही मुक्ति गृह है, जहाँ मैं तुझे अपने ही हाथों से बन्द करूँगा।'

एक क्षण में उन्हे कई स्त्रियाँ झोपड़ियों के आसपास कुछ काम करती हुई दिखाई दी, मानो मधुमक्खियाँ अपने छत्तों के पास भिनभिना रही हों। कई स्त्रियाँ रोटियाँ पकाती थीं, कई शाक-भाजी बना रही थी, बहुत-सी स्त्रियाँ ऊन कात रही थीं, और आकाश की ज्योति उन पर इस भाँति पड़ रही थी मानो परम पिता की मधुर मुसक्यान है,और कितनी ही तपस्विनियाँ झाऊ के वृक्षों के नीचे बैठी ईश्वर-वन्दना कर रही थीं, उनके गोरे-गोरे हाथ दोनों किनारे लटके हुए थे क्योंकि ईश्वर के प्रेम से परिपूर्ण हो जाने के कारण वह हाथों से कोई काम न करती थीं, केवल